आप सबसे बढ़कर झूठा है। वह यह नहीं जानता कि उसका सच्चा होना दूसरों के सच्चे होने ही पर अवलंबित है। सारी मनुष्य जाति के लिये प्रेम और दानशीलता ही सच्ची धार्मिकता की पहचान है। मैं केवल इस बात के मौखिक कहने को कि सब लोग भाई हैं, नहीं मानता। यह मनुष्य मात्र के जीवन को एक समझने की बात है। जहाँ तक वे भिन्न नहीं हैं, मेरी समझ में सारे मत और संप्रदाय मेरे ही हैं, सब अच्छे हैं। वे सब लोग सच्चे धर्म के सहायक हैं। मैं यह कहूँगा कि संप्रदाय में जन्म ग्रहण करना बहुत अच्छा है, पर संप्रदाय में आजन्म पड़े रहना अच्छा नहीं है। बच्चे होकर उत्पन्न होना बहुत ही अच्छा है, पर सदा बच्चे बने रहना अच्छा नहीं है। मंदिर, पूजा और कर्मकांड यह सब बच्चों के लिये बहुत ही अच्छे हैं। पर जब वे बड़े हो जाते हैं, तब उनको मंदिर आदि की आव- श्यकता नहीं रहती। हमें सदा बच्चे ही नहीं बने रहना चाहिए। यह तो वैसी ही बात है कि कोई एक ही अँगरखे को सब छोटे बड़े को पहनाना चाहे। मैं संसार में संप्रदायों के होने का खंडन नहीं करता। ईश्वर करे कि वे दो करोड़ से भी अधिक हो जायँ; और हैं भी। जितना वे बढ़ेंगे, उतना ही चुनने के लिये लोगों को अवसर मिलेगा। जिस बात पर मेरी आपत्ति है, वह यह है कि किसी एक धर्म को सब दशाओं में प्रयुक्त करना। यद्यपि सभी धर्म सारतः एक ही हैं, पर उन सबके भिन्न भिन्न रूप भिन्न भिन्न जातियों में विभिन्न अवस्थाओं के
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