पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/२१७

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और फिर उसकी उँगलियाँ आपसे आप फिरने लगती हैं। फिर वह किसी राग को बिना स्वर का ध्यान किए ही बजा सकता है। यही बात हमें अपने संबंध में भी जान पड़ती है। हमारी प्रवृत्तियाँ हमारे पूर्व के ज्ञानपूर्वक अभ्यास से उत्पन्न हुई हैं। बच्चा कुछ प्रवृत्तियाँ लेकर उत्पन्न होता है। पर वे आती कहाँ से हैं? कोई बच्चा बिना संस्कार के, वासनाहीन और सादा चित्त लेकर उत्पन्न नहीं होता। उस पर पूर्व के संस्कार रहते हैं। यूनान और मिस्र के दार्शनिकों का सिद्धांत था कि कोई बालक वासनाहीन चित्त लेकर नहीं उत्पन्न होता। प्रत्येक बच्चा अपने पूर्व जन्मों के कर्मों के सैंकड़ों संस्कार लेकर उत्पन्न होता है। उसमें इस जन्म के उपार्जित संस्कार नहीं होते; और हम यह मानने के लिये बाध्य हैं कि वे अवश्य उसके पूर्व जन्म के संस्कार हैं जिन्हें वह साथ लाता है। घोर से घोर अनात्मवादी वा प्रकृतिवादी भी यह स्वीकार करता है कि यह पूर्व जन्मों के कर्म के फल हैं। उनका केवल इतना ही अधिक कहना है कि यह पितृ-पैतामहिक दाय है। अब यदि दाय मात्र से काम चल जाय तो आत्मा के मानने की कोई आवश्यकता ही नहीं है और शरीर ही से सारे संशयों का समाधान हो जाता है। पर हमें अध्यात्मवाद और अनात्म- वाद के तर्कवितर्क और वादविवाद यहाँ लाने की आवश्य- कता नहीं है। हम देखते हैं कि युक्तिपूर्वक निगमन के लिये पूर्व जन्म का स्वीकार करना आवश्यक है। यही पूर्व काल से

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