पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/२१२

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अंधविश्वास शीशे की भाँति चूर चूर हो रहा था। जिनके पास धर्मविश्वास और बेठिकाने उपचारों की गठरी थी, वे बड़े सोच में, बड़ी निराशा में पड़े थे; उनके अवसान छूट रहे थे। उनके हाथ से सब निकले जा रहे थे। कुछ काल तक तो अब तब लँगा था और संशयवाद और प्रकृतिवाद की बढ़ती हुई लहर सब कुछ जो उसके सामने पड़ता था, साफ करती जा रही थी। ऐसे लोग भी थे जिन्हें एक बात भी जो उनके मन में आती थी, बोलने का साहस नहीं होता था। कितनों ने तो रोग असाध्य समझ लिया था और जान बैठे थे कि सब धर्म सदा के लिये जाते रहेंगे। पर लहर या धार मुड़ गई और हमारे वाण के लिये धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन पहुँच गया। भिन्न भिन्न धर्मों की तुलना से हमें जान पड़ा कि सबका तत्व एक ही है। जब मैं बच्चा था, मुझमें अविश्वास घुसा और मुझे जान पड़ा कि मुझे धर्म के संबंध में सारी आशाएँ त्यागनी पड़ेगी। पर सौभाग्य की बात है कि मुझे ईसाई धर्म, मुसल- मानी धर्म और बौद्धादिक धर्मों के ग्रंथों को पढ़ने का अवकाश मिला और मुझे जान पड़ा कि जिन मूल सिद्धांतों की शिक्षा मेरे धर्म में दी गई है, उन्हीं की शिक्षा सब धर्मों में है। इसका मुझ पर यह प्रभाव पड़ा कि मैं अपने मन में कहने लगा कि सत्य क्या है? क्या वह संसार है? उत्तर मिला, हाँ। मैंने पूछा क्यों? जान पड़ा कि इसलिये कि हमें ऐसा जान पड़ता है। क्या सुहाने शब्द जो हमें सुनाई पड़ते हैं, सत्य है? हाँ,अवश्य है; हम