पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/२०१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
[ १९३ ]
(२५) याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी।

हम लोग कहा करते हैं कि “बुरा दिन वही है, जिस दिन भगवत् के नाम का कीर्तन न हो; बदली का दिन बुरा दिन नहीं है।” याज्ञवल्क्य नाम के एक महर्षि थे। आप जानते हैं कि भारतवर्ष के शास्त्रों में विधि है कि सब लोगों को वृद्धा- वस्था में संसार को त्याग देना चाहिए। अतः याज्ञवल्क्य ने अपनी पत्नी से कहा कि “प्रिये, यह लो मेरी सारी धन-संपत्ति, मैं जाता हूँ।” उसने पूछा कि―“महाराज, यदि सारी पृथ्वी धन-पूर्ण हो तो क्या इससे मैं अमर हो जाऊँगी?" याज्ञवल्क्य ने कहा―‘नहीं, यह बातें तो होने की नहीं। हाँ इससे तुम धनी हो जायोगी,पर धन से अमरता न होगी।’ उसने कहा कि “तो फिर उन्हें लेकर मैं क्या करूँगी जब मैं उनसे अमरन होऊँगी? यदि आपको कोई उपाय ज्ञात हो तो बतलाइए।” याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया कि―“तू मुझे सदा प्रिय थी और इस प्रश्न के पूछने से और भी अधिक प्रिय है। आ और बैठ। मैं तुझे बतलाता हूँ, सुन और उस पर ध्यान दे।” उसने कहा―“कोई पत्नी पति के लिये पति से प्रेम नहीं करती, वह आत्मा ही के लिये पति से प्रेम करती है। पत्नी के लिये कोई पत्नी से प्रेम नहीं करता, केवल आत्मा के लिये ही वह उससे प्रेम करता है। पुत्र से कोई पुत्र के लिये प्रेम नहीं करता, आत्मा के लिये ही लोग पुत्र से प्रेम करते हैं। धन की कामना से धन

१३