गूढ़ है कि इसका जानना बड़ा ही कठिन है। दूसरा वर माँगिए;
यह वर मत माँगिए। मैं आपको सौ वर्ष की आयु दे सकता
हूँ; पशु माँगिए, घोड़े माँगिए, बड़ा राज्य माँग लीजिए, सब
माँगिए, मैं दूँँगा। पर यह बात मत पूछिए।” लड़के ने कहा―
“नहीं महाराज! मनुष्य को धन से तृप्ति कहाँ? यदि मुझे धन
की कामना होती, तो वह तो आपके दर्शन मात्र से पूरी हो
जाती। जब तक आप चाहेंगे, तभी तक मैं जिऊँगा। भला
संसार का ऐसा कौन प्राणी होगा जो अमर देवताओं की संगति
पाकर गीत वाद्यादि के सुखों को सुख समझता हुआ अधिक
जीवन की इच्छा करे। अतः आप कृपाकर उस बड़े प्रश्न का
उत्तर दीजिए। मुझे किसी और पदार्थ को आवश्यकता नहीं
है। नचिकेता केवल यही मृत्यु ही का प्रश्न पूछना चाहता है।”
यम प्रसन्न हुए। हम पूर्व के दो तीन व्याख्यानों में बतला
चुके हैं कि ज्ञान से अंतःकरण की शुद्धि हो जाती है। आप
यहाँ देखिए कि पहली बात यह है कि मनुष्य को सिवाय सत्य
के किसी और पदार्थ की इच्छा नहीं होती और वह सत्य की
इच्छा सत्य के लिये होती है। देखिए, उस लड़के ने उन पदार्थों
को जो यम उसे दे रहे थे,―जैसे अधिकार, संपत्ति, धन और
आयु―कैसे त्याग दिया और वह केवल इसी एक बात के
लिये अर्थात् ज्ञान के लिये, सत्य के लिये सब कुछ छोड़ने पर
उद्यत था। केवल इसी प्रकार सत्य की प्राप्ति हो सकती है।
यमराज प्रसन्न होकर कहने लगे कि दो मार्ग हैं, एक प्रेय और
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