पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१८३

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
[ १७५ ]


उसी पर बुराई का रंग चढ़ा हुआ है। वही सत्ता आदि में, मध्य में और अंत में सदा बनी रहती है। उसका कभी नाश नहीं है, वह सदा रहती है।

अतः सबके लिये आशा है। मुझे न भय है न शंका। मृत्यु मेरे पास नहीं आ सकती। मेरे न कभी पिता थे न माता; मेरा कभी जन्म ही नहीं हुआ। मेरे शत्रु कहाँ हैं? मैं ही तो सब हूँ। मैं सत्, चित् और आनंद हूँ। सोऽहम् , सोऽहम्। क्रोध, काम और ईर्ष्या, दुष्ट और अन्य सब विचार मेरे पास कभी आ नहीं सकते, क्योंकि सत्, चित् और आनंद मैं ही हूँ। यही मैं हूँ! यही मैं हूँ!

यही सारे रोगों का औषध है। यही अमृत है जिससे मृत्यु का नाश होता है। मैं यहाँ संसार में हूँ; मेरी प्रकृति मुझ से विरुद्ध हो जाती है। पर मुझे जपने दो सोऽहम् सोऽहम्। मुझे कोई भय नहीं, कोई शंका नहीं, मृत्यु नहीं, लिंग नहीं, जाति नहीं, वर्ण नहीं। मेरा धर्म क्या होगा? भला कौन ऐसा धर्म है जिसे मैं ग्रहण करूँ? मैं किस धर्म में आ सकता हूँ? मैं तो सभी धर्मों में हूँ।

आपका शरीर आपके अधिकार से बाहर भले ही जाय, मन आपके वश में भले ही न रहे, घोर अंधकार की दशा में, अत्यंत यातना क्यों न हो, नितांत निराशा में इसका जप एक दो तीन बार नित्य किया करो। प्रकाश धोरे धीरे आता है, पर आवेगा अवश्य।