पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१८०

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है। इसका कारण यही है कि वह नियम को तोड़ने का प्रयास करता है। इंजिन इतनी शक्ति रहते हुए भी नियम का उल्लंघन नहीं कर सकता। यह उसी ओर जाता है जिधर मनुष्य उसे ले जाता है, वह अन्यथा कर नहीं सकता। पर कीड़ा छोटा और तुच्छ भले ही क्यों न हो, अपनी स्वतंत्रता का दम भरता है। उसमें यही चिह्न है जिससे वह आगे को देवता हो जायगा।

सर्वत्र हमें मोक्ष को प्राप्त करने का यही प्रयत्न दिखाई पड़ता है; अर्थात् आत्मा के मोक्ष प्राप्त करने का। यह सब धर्मों में ईश्वर वा देवता के रूप में प्रतिबिंबित हो रहा है। पर यह बाहरी है उन लोगों के लिये जो देवताओं को अलग समझते हैं। मनुष्य ने यह निश्चय किया कि मैं कुछ हूँ नहीं। उसे भय था कि मुझे मोक्ष नहीं मिल सकता। यही कारण है कि उसने संसार वा प्रकृति के परे किसी और को ढूँढ़ने का प्रयत्न किया, जो उसके बंधन से मुक्त हो। फिर उसके विचार में यह बात आई कि ऐसे अनेक मुक्त सत्व हैं और क्रमशः उसने सबको मिलाकर एक सत्व बना लिया जो “देव देव” कहलाया। पर उससे भी उसका संतोष न हुआ। अब वह सत्य के और पास पहुँच गया था, कुछ अधिक समीप। फिर धीरे धीरे उसे यह जान पड़ा कि उसका किसी न किसी प्रकार उस देव देव से संबंध अवश्य था; उसने यह समझा था कि यद्यपि वह परि- मित, नीच, बद्ध और निर्बल था, फिर भी उसका देव देव के