पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१७०

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तक कि जब बहुत पास पहुँच जाता है, तब वह बिलकुल रह ही नहीं जाता और अब उसे जान पड़ता है कि वास्तव में मैं क्या था और क्या हो गया। बात यह थी कि नीचे का पक्षी वास्तव में ऊपर के पक्षी की छाया मात्र था, जो एक पक्षी के आकार का हो गया था। वह सचमुच वही था, दूसरा नहीं था। नीचे के पक्षी का मीठा कड़ुआ फल खाना, उसका सुखी दुःखी होना इत्यादि सष स्वप्न ही था। सदा वह पक्षी ऊपर ही था और प्रशांत, आनंदमय, सुख दुःख से परे था। ऊपर का पक्षी ईश्वर विश्व का अधीश्वर था और नीचे का मनुष्य की आत्मा थी जो संसार के सुख दुःख रूपी मीठे और कड़ुए फलों की भोक्ता थी। कभी कभी आत्मा पर भारी आघात पहुँचता है। थोड़ी देर के लिये उसका भोगना बंद हो जाता है और वह ईश्वर की ओर जाता है और उसमें प्रकाश आ जाता है। वह समझता है कि यह संसार मिथ्या और निःसार है। पर इन्द्रियाँ उसे खींच ले जाती हैं और वह फिर संसार के मीठे और कड़ुए फलों को खाने लगता है। उस पर फिर धौल पड़ती है। उसके हृदय के कपाट फिर खुल जाते हैं और वह ईश्वरी प्रकाश से परिपूर्ण हो जाता है। इस प्रकार धीरे धीरे करके वह ईश्वर के पास पहुँँच जाता है। फिर उसे जान पड़ता है कि मेरे पुराने रूप का क्षय होता जा रहा है। जब वह अत्यंत समीप पहुँच जाता है, तब उसे जान पड़ता है कि मैं दूसरा नहीं था, स्वयं ईश्वर ही था। तब वह कहता है कि वह जिसे