पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१६९

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है और झाड़ पोंछकर साफ कर दी जाती है। और जो अंत में उसमें बच रहता है, वह वही ईश्वर है।

एक ही वृक्ष पर दो पक्षी बैठे हैं, एक ऊपर और दूसरा नीचे। जो ऊपर बैठा है, वह प्रशांत और अपने महत्व में मग्न है; और जो नीचे की डाली पर है, वह मीठा कड़ुआ फल खाता, एक डाली से दूसरी डाली पर उचकता फिरता है। वह कभी सुखी और कभी दुःखी होता है। थोड़ी देर में नीचे के पक्षी के मुँह में एक कडुआ फल पड़ता है और वह काँप उठता है, ऊपर ताकने लगता है और दूसरे पक्षी को देखता है कि उसका वर्ण कैसा सौम्य और तप्तकांचनाभ है। वह न तो मीठा फल खाता है न कड़ुआ, न सुखी होता है न दुःखी, अपितु वह प्रशांत और आत्मरम है। उसे अपने सिवा कोई दिखाई ही नहीं पड़ता। नीचे का पक्षी चाहता है कि मैं भी वैसा ही हो जाऊँ, पर वह चट भूल जाता है और फिर फल खाने लगता है। थोड़े काल के अनंतर उसके मुँह में फिर कोई कड़ुआ फल पड़ता है। वह बड़ा ही खिन्न-चित्त हो जाता है और ऊपर ताकने लगता है और ऊपर के पक्षी के पास पहुँचने का प्रयत्न करता है। वह फिर भूल जाता है और फिर ऊपर ताकता है और कुछ ऊपर उचककर जाता है। यहाँ तक कि उचकते उचकते वह उस पती के पास पहुँचता है और देखता है कि उसके वर्ण का प्रतिबिंब मेरे पंख पर पड़ता है। उसमें परिवर्तन होने लगता है और वह सूक्ष्म होता जाता है। यहाँ