उनकी एकता के लिये किए गए, वे यह हुए कि सबको कुछ इने गिने सिद्धांतों पर लाया जाय; और इसका प्रतिफल यह हुआ कि सबको एक करने की जगह नए नए संप्रदाय उठ खड़े हुए और परस्पर वादविवाद और ठेलमठेला बढ़ता गया।
मेरी भी कुछ निज की प्रणाली है। मैं नहीं समझता कि वह काम में आ सकेगी वा नहीं, पर आपके सामने उसे विचार के लिये उपस्थित करता हूँ। मेरी प्रणाली यह है कि सबसे पहले मैं लोगों से यह कहूँगा कि इस वाक्य को स्मरण रखिए कि ‘बिगाड़ो मत’। जो संशोधक दूसरों को मिटाना चाहते हैं, वे संसार की कुछ भलाई नहीं कर सकते। न तो किसी का ध्वंस करो न किसी को गिराओ-पड़ाओ। हाँ; यदि हो सके तो उसे बनाओ, सहायता दो। यदि न हो सके तो खड़े रहो और देखा करो कि क्या होता है। यदि तुम सहायता नहीं दे सकते तो हानि मत पहुँचाआ। किसी मनुष्य के विश्वास के विरुद्ध जब तक उसे वह विश्वास बना रहे, एक शब्द भी मुँह से मत निकालो। दूसरी बात यह है कि जो मनुष्य जिस दशा में है, उसे वहीं से सहायता देकर ऊपर उठाओ। यदि यह सत्य है कि ईश्वर सब धर्मों का केंद्र है और हम लोग सब उसी केंद्र की ओर भिन्न मार्गों से जा रहे हैं, तब तो यह निश्चय है कि हम सब कभी न कभी उस तक अवश्य पहुँचेंगे; और केंद्र पर पहुँचकर जहाँ सब मार्ग मिलते हैं, सब भेद-भाव आपसे आप जाते रहेंगे। पर जब तक हम वहाँ नहीं पहुँचते, भेद-भाव