पृष्ठ:विवेकानंद ग्रंथावली.djvu/१३३

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वे अब भी हैं और यहीं हैं। ये न तो सिद्धांत के मानने की, न उस पर विश्वास करने की और न कहने की बातें हैं। यदि ईश्वर है तो क्या आपने उसे देखा है? यदि आप कहें―'नहीं' तो आपको उसपर विश्वास करने का अधिकार क्या है? यदि आपको संदेह है कि ईश्वर है वा नहीं, तो उसे देखने का प्रयत्न आप क्यों नहीं करते? फिर आप संसार को छोड़ क्यों नहीं देते और अपना सारा जीवन इसी पर क्यों नहीं लगाते हैं? त्याग और आध्यात्मिकता भारतवर्ष के दो बड़े भाव हैं; और यही कारण है कि इन दोनों भावों से उसके सारे दोषों की गिनती कुछ नहीं मानी जाती।

ईसाइयों में भी प्रधान बात, जिसका उपदेश है, वही है; अर्थात् जागते रहो और प्रार्थना करते रहो, क्योंकि स्वर्ग का राज्य आनेवाला है। इसका आशय यही है कि अपने मन को शुद्ध करो और उद्यत रहो। आपको स्मरण होगा कि ईसाई लोग यहाँ तक कि घोर अंधकार के समय में,अत्यंत पक्षपातपूर्ण ईसाई देशों में सदा भगवान् के आने के लिये दूसरों की सहा- यता करके, चिकित्सालय आदि बनवाकर अपने को उद्यत रखने का प्रयत्न करते रहे हैं। जब तक ईसाई लोग यह आदर्श बनाए हुए हैं, उकना धर्म बना है।

अब मेरे मन में एक और आदर्श आ रहा है। संभव है कि वह स्वप्न की बात हो। मैं नहीं जानता कि कभी संसार में लोग इसे साक्षात् करेंगे वा नहीं। पर फिर भी कभी कभी