क्या है, यदि उनका यह मान ध्वंस हुआ हो; और ईश्वर की कृपा से वह सदा ध्वंस होता रहेगा। इस संबंध में मुसलमान लोग अच्छे रहे। उनकी गति पग पग में तलवार के बल पर थी―एक हाथ में कुरान था और दूसरे हाथ में तलवार। कुरान पर विश्वास करो वा मरो। और कोई उपाय नहीं। आप इतिहास से जानते होंगे कि उनके धर्म का प्रसार कैसा बिजली की तरह हुआ है। छः सौ वर्ष तक कोई उनकी गति का अवरोध ही नहीं कर सका। फिर वह समय भी आया कि उनको रुकना पड़ा। यही परिणाम और धर्मों का भी होगा, यदि वे उसी मार्ग का अवलंबन करेंगे। हम ऐसे बाल-धी हैं; सदा मानवी प्रकृति को भूल जाया करते हैं। जब हमारा जन्म होता है, तब हम समझते हैं कि हम अलौकिक सफलता लेकर आए हैं; और चाहे कुछ हो, हम अपनी बात नहीं छोड़ते। पर ज्यों ज्यों बड़े होते जाते हैं, विचार बदलते जाते हैं। यही दशा धर्मों की भी है। जब वे प्रारंभिक अवस्था में रहते हैं और कुछ प्रसार हो चलता है, तब उनका यह अनुमान होता है कि थोड़े ही वर्षों में हम सारी मनुष्य जाति को पलट देंगे और मार- काट करते हुए बलपूर्वक अपना अनुयायी बनाते जाते हैं। पर अंत में जब उनको विफलता होती है, तब उनकी बुद्धि ठिकाने आती है। हम देखते हैं कि ये संप्रदाय अपने उद्देश को, जिसके लिये उनका आरंभ हुआ था और जो बड़ा ही लाभ- दायक था, पूरा नहीं कर सके हैं। तनिक सोचिए तो सही,
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