में बड़े बड़े पक्षपाती होते हैं। इसका कारण क्या है? संसार में
बहुत कम ऐसे प्रचारक वा पंडे होंगे जो मनुष्यों के नेता हों।
उनमें अधिकतर लोगों के पीछे जानेवाले और उनके दास
हैं। यदि आप कहें कि सूखा है, तो वे सूखा बतावेंगे; आप कहें
काला है, तो वे काला कहेंगे। यदि लोग आगे बढ़ते हैं तो पुजारी-
पंडे भी आगे बढ़ते हैं। उनका पैर पीछे न रहेगा। अतः पंडों
को दोष देने की जगह―जैसी कि पंडों के सिर दोष देने की
चाल पड़ गई है―अपने आपको दोष देना चाहिए। आप
जिसके पात्र हैं, वही आप पाते हैं। उस उपदेशक की क्या
दशा होगी जो आपको नए और उच्च विचार का ज्ञान दे और
आपको आगे बढ़ावे? उसके लड़के भूखों मर जायँगे और
वह ठिकाने लग जायगा। उसे भी तो संसार में वैसे ही रहना
है, जैसे आप रहते हैं। यदि आप आगे बढ़ेंगे तो वह भी कहेगा
कि आगे बढ़िए। इसमें संदेह नहीं कि ऐसे इने गिने ही लोग
होंगे जिन्हें लोकापवाद का भय न हो। ऐसे लोग सत्य ही को
देखते और सत्य ही का आदर करते हैं। उन पर सत्य का
अधिकार हो गया है; वे सत्य के वश में हैं; उनके लिये लोक है
ही नहीं। उनके लिये तो एक ईश्वर ही है। वही उनके सामने
प्रकाश कर रहा है और वे उसके पीछे जा रहे हैं।
मैं इस देश के एक मोरमन सज्जन से मिला जा। उसने मुझसे अपना धर्म स्वीकार करने के लिये कहा। मैंने उससे कहा कि मैं आपके विचार का आदर करता हूँ; पर कुछ बातों में