है न अमेरिका से; सब धर्म एशिया खंड से निकले हैं। उनका मूल स्थान संसार के उसी खंड में है। यदि आजकल के वैज्ञा- निकों का यह कहना ठीक है कि ‘युक्ततमेऽवस्थानं’ ही कसौटी है, तो इन धर्मों के अब तक रह जाने से प्रमाणित होता है कि वे अब भी बहुतो के काम के हैं। उनके रह जाने का यही कारण है कि उनसे बहुतों का कल्याण होता है। मुसलमानों को देखिए, वे कैसे दक्षिणी एशिया के कुछ देशों में फैलते जा रहे हैं और अफ्रिका में आग की तरह बढ़ रहे हैं। बौद्ध धर्म के लोग सारे मध्य एशिया में फैले जा रहे हैं, यद्यपि मुझे इसका निश्चय नहीं है। उनका प्रसार उसी वेग से हो रहा है जैसे पहले होता था। हिंदू लोग भी यहूदियों की भाँति दूसरों को अपने धर्म में नहीं लेते; फिर भी और जातियाँ धीरे धीरे हिंदू धर्म में घुसती जा रही हैं और उनकी रीति-नीति का अवलंबन करके उनमें आपसे आप मिल रही हैं। आप जानते हैं कि ईसाई धर्म भी फैलता ही जाता है, यद्यपि मुझे निश्चय नहीं है कि यह उस वेग से बढ़ रहा जैसा कि उसके लिए जोर लगाया जाता है। ईसाई धर्मवाले एक बड़ी भूल कर रहे हैं और वही उनके फैलने में बाधक है। वह दोष प्रायः सभी युरोपीय संस्थाओं में है। कलों में सैकड़े नब्बे शक्ति नष्ट हो जाती है; और युरोप में बहुत अधिक कलों का ही काम है। उपदेश करना सदा से एशिया- वालों का काम था। पश्चिम के लोग संघटन का काम अच्छा जानते हैं। वे सामाजिक संस्था, सेना, शासन आदि का काम
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