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, - ६२।८-१२ ] २-संघादिसेस [ ४५ (६) पाराजिकका दोषारोपण ८–किसी भिक्षुणीका दुष्ट (चित्तसे ), द्वेपसे, नाराजगीसे दूसरी भिक्षुणीपर निर्मूल पाराजिक दोषका लगाना, जिसमें कि वह इस ब्रह्मचर्यसे च्युत हो जावे, (-भिक्षुणी न रह जावे ) फिर पीछे पूछने या न पूलनेपर वह झगड़ा निर्मूल ( मालूम ) हो, और उस ( दोष लगाने वाली ) भिक्षुणीका दोप सिद्ध हो; तो वह भी०। ९-किसी भिक्षुणीका दुष्ट (चित्तसे ), द्वेषसे, नाराजगोसे, अन्य प्रकारके झगड़े की कोई बात लेकर दूसरी भिक्षुणोको पाराजिक दोषका लगाना, जिसमें कि वह इस ब्रह्म- चर्यसे च्युत हो जाय; और फिर पूछने या न पूछनेपर उस झगड़ेकी असलियत मालूम हो और उस ( दोप लगानेवालो) भिक्षुणोका दोप सिद्ध हो; तो वह भी० । (७) धर्मका प्रत्याख्यान १०–यदि कोई भिक्षुणी कुपित, असंतुष्ट हो यह कहे-"मैं बुद्धका प्रत्याख्यान करती हूँ, धर्मका प्रत्याख्यान करती हूँ, संघका प्रत्याख्यान करतो हूँ, शाक्यपुत्रीय श्रमणियों (=साधुनियों ) से मुझे क्या लेना है ? लज्जा, संकोच, शील, शिक्षाकी चाहवाली दूसरी भो श्रमणियाँ हैं। मैं उनके पास ब्रह्मचर्य-वास करूँगी।" तो भिक्षुणियोंको उस भिक्षुणीसे ऐसा कहना चाहिये-"आर्ये ! मत कुपित, असंतुष्ट हो ऐसा कहो,–'मैं वुद्धका प्रत्याख्यान करती हूँ, धर्मका प्रत्याख्यान करतो हूँ, संघका प्रत्याख्यान करती हूँ। शाक्यपुत्रीय श्रमणियों ख मुझे क्या लेना है ? लज्जा, संकोच, शोल, शिक्षाकी चाहवाली दूसरी भी श्रमणियाँ हैं, मैं उनके पास ब्रह्मचर्य-वास करूँगी'-आयें ! यह धर्म सुन्दर प्रकारसे कहा गया है । इसमें श्रद्धालु वन दुःखके अच्छी तरह नाशके लिये ब्रह्मचर्य-वास करो !" भिक्षु- रिणयों द्वारा ऐसा कहनेपर यदि वह भिक्षुणी वैसेही जिद पकड़े रहे तो भिक्षुणियोंको तीन वार तक उससे उस जिद्को छोड़नेके लिये कहना चाहिये । तीन वार तक कही जानेपर यदि वह उस जिद्को छोड़ दे तो उसके लिये अच्छा है, यदि न छोड़े तो वह भी० । (८) भिक्षुणियोंका निन्दना ११-जो कोई भिक्षुणी किसी अभियोगमें हार जानेपर कुपित, असंतुष्ट हो ऐसा वाहे.-"रागके पोछे जानेवाली हैं भिक्षुणियाँ, द्वेपके पीछे जानेवाली हैं भिक्षुणियाँ, मोहके पीछे जानेवाली हैं भिक्षुणियाँ, भयके पोछे जानेवाली हैं भिक्षुणियाँ।" तो उस भिक्षुणोको और भिक्षणियों ऐसे कहें-"यार्ये ! किसी झगड़ेमें हार जानेसे कुपित और असंतुष्ट हो मत ऐसा कहो-'राग पोछे जानेवाली हैं भिक्षुणियाँ, द्वेपके पीछे जानेवाली हैं भिक्षुरिणयाँ, मोदक, पीछे जानेवाली हैं भिक्षुणियाँ, भयके पोछे जानेवालो हैं भिक्षुणियाँ ।' पार्या हो राग, द्वेप, मोह, भयवे, पीई जा सकती हैं।" इस प्रकार उन भिक्षुणियों द्वारा कही जाने पर चदि वह भिजणी वैनही जिद पकड़े रहे तो भिनुणियाँ तीन बार तक उससे वह जिद छोड़ने लिय कह । तोन वार तक कहे जानेपर यदि वह उस जिद्को छोड़ दे तो यह उसवं लियं अच्छा है नहीं तो वह भिक्षुणी भी। (C) बुरा संसर्ग -निहाणियों यदि दुराचारिणी, वदनाम, निंदित वन भिक्षुणी-संघके प्रति द्रोह हरती और एक दसव. दापोंको ढांकती (दुर ) संसर्गमें रहती हो, नो (दूसरी) भिक्षुणियाँ न मिमियोंको गसा कह.-"भगिनियो ! तुम सब दुगचारिणी, वदनाम, निंदित वन,