६५।६९-७३ ] ५-पाचित्तिय [ २९ ६९-यदि कोई भिक्षु जानते हुये उक्त (प्रकारको बुरी) धारणावाले ( तथा ) धर्मानुसार ( मत ) परिवर्तन न करनेवाले उक्त विचारको न छोड़े भिक्षुके साथ सह- भोज, सह-वास या सह-शय्या करता है, उसे पाचित्तिय है। ७०-( क ) श्रमणोदेश' भी यदि ऐसा कहे-'मैं भगवान्के धर्मको ऐसे जानता हूँ कि भगवान्ने जो ( निर्वाण आदिके ) अन्तरायिक (= विघ्नकारक ) कार्य कहे हैं, उनके सेवन करनेपर भी वह विन्न नहीं कर सकते'; तो (दूसरे ) भिक्षुओंको उसे ऐसा कहना चाहिये-"आबुस ! श्रमणोद्देश ! मत ऐसा कहो। मत भगवान्पर झूठ लगायो । भगवान्पर झूठ लगाना अच्छा नहीं है। भगवान ऐसा नहीं कह सकते। भगवान्ने विन्नकारक कार्योंको अनेक प्रकारसे विन्न करनेवाले कहा है । सेवन करनेपर वे विघ्न करते हैं—कहा है।" इस प्रकार भिक्षुओं द्वारा कहे जानेपर यदि वह श्रमणोदेश ज़िद् करे तो भिक्षु श्रमणोद्देशसे ऐसा कहें-"अावुस श्रमणोद्देश ! आजसे तुम उन भगवान्को अपना शास्ता ( = उपदेशक= गुरु ) न कहना; और जो दूसरे श्रमणोदेश दो रात, तीन रात तक भिनुओंके साथ रहते हैं वह ( साथ रहना ) भो तुम्हारे लिये नहीं है। चलो, ( यहाँसे ) निकल जाओ !" ( ख ) जो कोई भिनु जानते हुए, इस प्रकार निकाले हुए श्रमणोद्देशको, सेवामें रक्खे, (उसके साथ) सहभोजन करे, सह-शय्या करे, उसे पाचित्तिय है। (इति) सप्पणक वग्ग ॥७॥ (२७) धार्मिक वातका अस्वीकारना ७१–जो कोई भिक्षु, भिक्षुओंके धार्मिक वात कहनेपर इस प्रकार कहे-आवुस ! मैं तबतक इन भिक्षु-नियमों ( =शिक्षा-पदों )को नहीं सीलूँगा जबतक कि दूसरे चतुर विनय-धर भिक्षुको न पूछ लूँ ; उसे पाचित्तिय है । भिक्षुओ ! सोखनेवाले भिक्षुको जानना चाहिये, पूछना चाहिये, प्रश्न करना चाहिये-यह उचित है। (२८) प्रातिमोक्ष ७२-जो कोई भिक्षु पातिमोक्ख (=प्रातिमोक्ष )की आवृत्ति करते वक्त ऐसा कहे- इन छोटे छोटे शिक्षा-पदोंको श्रावृत्तिसे क्या मतलब जो सन्देह, पोड़ा और क्षोभ पैदा करने वाले हैं । ( इस प्रकार ) शिक्षा पदके विरुद्ध कथन करनेमें पाचित्तिय होता है। ७३–जो कोई भिनु प्रत्येक प्राधे मास पातिमोक्खकी आवृत्ति करते समय ऐसा काहे-“श्रावुस ! यह तो मैं अब जानता हूँ कि सूत्रोंमें आये, सूत्रों द्वारा अनुमोदित इस धर्मकी भी प्रति पन्द्रहवें दिन श्रावृत्तिकी जातो है । यदि दूसरे भिनु उस भिक्षुको पूर्वसे बैठा जानें; दो तीन या अधिक पातिमोक्खको आवृत्ति कीजानेपर भी (उसको वैसेहो पायें); नो समभीके कारण वह भिक्षु मुक्त नहीं हो सकता। जो कुछ अपराध उसने किया है उसका धर्मानुसार प्रतिकार कराना चाहिये और आगे उसपर मोहका आरोप करना चाहिये- श्रावुस ! तुनं अलाभ है, तुने कुरा लाभ हुआ है जो कि पातिमोक्खको श्रावृत्ति करते १ निनु दनका उम्मेदवार । २ जिसको विनयपिटक कंठस्थ है।
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