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! ! १२९३।१] उद्वाहिकाका चुनाव [ ५५५ मैं अधिकतर मैत्री विहारसे बिहरता हूँ; यद्यपि मुझे अर्हत्-पद पाये चिर हुआ । भन्ते ! स्थविर आजकल किस विहारसे अधिक विहरते हैं। ?" "भुम्म ! मैं इस समय अधिकतर शून्यता विहारसे विहरता हूँ।" "भन्ते ! इस समय स्थविर अधिकतर महापुरुष-विहारसे विहरते हैं । भन्ते ! यह 'शून्यता' महापुरुष -विहार है।" "भुम्म ! पहिले गृही होनेके समय मैं शून्यता विहारसे विहरा करता था, इसलिये इस समय शून्यता विहारसेही अधिक विहरता हूँ; यद्यपि मुझे अर्हत्त्व पाये चिर हुआ ।" (जव) इस प्रकार स्थविरोंकी आपसमें बात हो रही थी, उस समय आयुष्मान् साणवासी पहुंच गये। तव आयुष्मान् संभूत साणवासी जहाँ आयुष्मान् सर्वकामी थे, वहाँ गये । जाकर आयु- प्मान् सर्वकामीको अभिवादनकर - एक ओर बैठ • • यह बोले- "भन्ते ! यह वैशालिक वज्जिपुत्तक भिक्षु वैशाली में दश वस्तुका प्रचार कर रहे हैं । स्थविरने (अपने) उपाध्याय (=आनन्द) के चरणमें बहुत धर्म और विनय सीखा है । स्थविरको धर्म और विनय देखकर कैसा मालूम होता है ? कौन धर्मवादी हैं, प्राचीनक भिक्षु, या पावेयक?" "तूने भी आवुस ! उपाध्यायके चरणमें बहुत धर्म और विनय सीखा है । तुझे आवुस ! धर्म और विनयको देखकर कैसा मालूम होता है ? कौन धर्मवादी हैं, प्राचीनक भिक्षु या पावेयक ?" "भन्ते ! मुझे धर्म और विनयको अवलोकन करनेसे ऐसा होता है-'प्राचीनक भिक्षु अधर्म- वादी हैं, पावेयक भिक्षु धर्मवादी हैं ।· · ।" आवुस • ऐसा होता है-प्राचीनक भिक्षु अधर्मवादी हैं, पावेयक धर्मवादी।"...। ३-सङ्गोतिकी-कार्यवाही (१) उद्वाहिकाका चुनाव नव उस विवादके निर्णय करनेके लिये संघ एकत्रित हुआ। उस अधिकरणके विनिश्चय (=फैसला) करते समय अनर्गल वकवाद उत्पन्न होते थे, एक भी कथनका अर्थ मालूम नहीं पळता था। तब आयुष्मान् रेवतने संघको ज्ञापित किया- ज्ञप्ति “भन्ते ! संघ मुझे सुने-हमारे इस विवादके निर्णय करते समय अनर्गल वकवाद उत्पन्न होते हैं। यदि संघको पसन्द हो, तो संघ इस अधिकरणको उ द्वा हि का (= सेलेक्ट कमीटी)से शान्त करे।" चार प्राचीनक भिक्षु और चार पावेयक भिक्ष चुने गये । प्राचीनक भिक्षुओंमें आयुप्मान् सर्व वा मी, आयुष्मान् साढ़, आयुष्मान् क्षु द्रशो भित (=खुज्ज सोभित) और आयुष्मान् वा र्प भ- ग्रा मि वः (= वासभ गामिक)। पादेयक' भिक्षुओंमें आयुप्मान् रे व त, आयुप्मान् संभ त सा ण वा सी, आयुष्मान् य श का के ड पुत्त और आयुष्मान् सु म न । तव आयुष्मान् रेवतने संघको ज्ञापित किया- नप्ति “भन्ते ! संघ मुझे सुने-हमारे इस विवादके निर्णय करते समय अनर्गल वकवाद उत्पन्न होते हैं । यदि संघको पसन्द हो, तो संघ चार प्राचीनक (और) चार पावैयक भिक्षुओंकी उहाहिका इन विवादको गमन करनेके लिये चुने—यह ज्ञप्ति है । “मुझे भी ! पश्चिमी युक्तप्रान्तदाले।