७- १८ ] भिक्खु-पातिमोक्ख [६४७-१० -उसी ( भिक्षु )को यदि अज्ञातक गृहस्थ या गृहस्थिनियाँ यथेच्छ चीवर प्रदान करें तो उन चोवरोंमेंसे अपनी आवश्यकतासे एक कम चीवर लेवे । उससे अधिक लेवे तो निस्सग्गिय-पाचित्तिय है। ८-उस भिक्षुके लिये हो अज्ञातक गृहस्थ या गृहस्थिनियोंने चोवर के लिये धन तैयार कर रखा हो-इस चीवरके धनसे चोवर तैयार कर अमुक नामवाले भिक्षुको हम चीवर दान करेंगे । वहाँ यदि वह भिक्षु प्रदान करनेसे पहिले हो जाकर अच्छेकी इच्छा ( यह कहकर ) चीवरमें हेर-फेर करावे-अच्छा हो अायुप्मान मुझे इस चीवरके धनसे ऐसा-ऐसा चोवर बनवाकर प्रदान करें; तो उसे निस्सग्गिय-पाचित्तिय है। ९-उसी भिक्षुके लिये दो अज्ञातक गृहस्थ या गृहस्थिनियोंने एक एक चीवरकेलिये धन तैयार करके रखा हो-हम चीवरोंके इन धनांसे एक एक चीवर बनवाकर अमुक नाम वाले भिक्षुको चोवर-दान करेंगे। तब यदि वह भिनु प्रदान करनेके पहिले ही अच्छेकी इच्छासे ( यह कहकर ) चीवरमें हेर फेर करावे-अच्छा हो आयुष्मानो ! मुझे इन प्रत्येक चीवरोंके धनसे दोनों मिलाकर इस-इस तरहका ( एक ) चीवर बनवा कर प्रदान करें, तो उसे निस्सग्गिय पाचित्तिय है। १०-उसी भिक्षुके लिये राजा, राजकर्मचारो, ब्राह्मण या गृहस्थ चीवरके लिये ( यह कहकर ) धनको दूत द्वारा भेजें-इस चोवरके धनसे चीवर तैयारकर अमुक नामके भिक्षुको प्रदान करो। और वह दूत उस भिक्षुके पास जाकर यह कहे-भन्ते ! आयुष्मानके लिये यह चीवरका धन आया है । इस चीवरके धनको अायुप्मान खोकार करें । तो उस भिक्षुको उस दूतसे यह कहना चाहिये-आवुस ! हम चीवरके धनको नहीं लेते । समयानुसार विहित चीवर ही को हम लेते हैं। यदि वह दूत उस भिन्नु को ऐसा कहे-क्या आयुष्मान्का कोई कामकाज करने वाला है ? तो भिक्षुओ ! उस भिक्षुको आश्रम-सेवक या उपासक-किसी कामकाज करने वालेको वतला देना चाहिये- श्रावुस ! यह भिक्षुओंका कामकाज करनेवाला है। यदि वह दूत उस कामकाज करनेवालेको समझाकर, उस भिक्षुके पास आकर यह कहे-भन्ते ! आयुष्मान्ने जिस कामकाज करनेवालेको बतलाया उसे मैंने समझा दिया। आयुष्मान समयपर जायें । वह आपको चीवर प्रदान करेगा। भिक्षुओ ! चीवरको आवश्यकता रखनेवाले भिक्षुको उस काम-काज करनेवालेके पास जाकर दो तीन बार याद दिलानी चाहिये-आवुस ! मुझे चीवरकी आवश्यकता है। दो तीन बार प्रेरणा करनेपर, याद दिलानेपर, यदि चीवरको प्रदान करे तो ठीक न प्रदान करे तो चार वार पाँच वार, अधिकसे अधिक छः वार तक ( उसके यहाँ जाकर ) चुपचाप खड़ा रहना चाहिये । चार वार, पाँच बार और अधिकसे अधिक छः वार तक चुपचाप खड़े रहनेपर यदि चोवर प्रदान करे तो ठीक, उससे अधिक कोशिश करके यदि उस चीवरको प्राप्त करे तो उसे निस्सग्गिय पाचित्तिय है । यदि न प्रदान करे तो जहाँसे चीवरका धन पाया है वहाँ स्वयं जाकर या दूत भेजकर (कहलवाना चाहिये)-आप अायुप्यमानोंने भिक्षुके लिये जो चीवरका धन भेजा था वह उस भिक्षु १ उदाहरणार्थ-यदि उसके तीनों चीवर नष्ट हो गये हों तो वह दो चीवर ले सकता है, दोके नष्ट होनेपर एक ले सकता है, और यदि एक ही नष्ट हुआ हो तो एक भी नहीं ले सकता ।
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