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1 ५३४ ] ४-चुल्लवग्ग [ १०१५।४ होनेपर 'है' कहना नहीं होनेपर 'नहीं है' कहना। क्या (१) तू निमित्त-रहित तो नहीं ० तेरे पात्र-चीवर (पूर्ण-संख्यामें) हैं ? तेरा क्या नाम है ? तेरी प्रवर्तिनीका क्या नाम है ? “(फिर) चतुर समर्थ भिक्षुणी संघको सूचित करे- "क. ज्ञप्ति--आर्ये ! संघ मेरी (वात) सुने, यह इस नामवाली, इस नामवाली आर्याकी उपसंपदा चाहनेवाली (शिप्या), विघ्नकारक बातोंसे शुद्ध है । (इसके) पात्र-चीवर परिपूर्ण हैं । ( यह ) इस नामवाली (उम्मीदवार) इस नामवाली (भिक्षणीको) प्रवर्तिनी बना संघसे उपसंपदा चाहती है । यदि संघ उचित समझे तो इस नामवाली (उम्मीदवार) को इस नामवाली (आर्या) के उपाध्यायत्वमें उपसंपदा दे---यह सूचना । "ख. अनुश्रावण--(१) आर्य ! संघ मेरी सुने । यह इस नामवाली इस नामवाली आर्याकी उपसंपदा चाहनेवाली शिष्या अन्तरायिक वातोंसे परिशुद्ध है, (इसके) पात्र-त्रीवर परिपूर्ण हैं । (यह) इस नामवाली उम्मीदवार इस नामवाली (आर्या) के उपाध्यायत्वमें उपसंपदा चाहती है । संघ इस नामवाली (उम्मीदवार) को इस नामवाली (आर्या) के उपाध्यायत्वमें उपसंपदा देता है । जिस आर्याको इस नामवाली (उम्मीदवार) की इस नामवाली (आयुष्मान्) के उपाध्यायत्वमें उपसंपदा पसंद है वह चुप रहे । जिसको पसंद नहीं है वह बोले । (२) दूसरी बार भी इसी बात को कहता हूँ--आर्ये ! संघ मेरी सुन ० । (३) तीसरी बार भी इस बातको कहती हूँ-आर्ये ! संघ मेरी सुने ० जिसको पसंद नहीं है वह बोले । ग. धारणा--"इस नामवाली (उम्मीदवार)को इस नामवाली (आर्या) के उपाध्यायत्वमें उपसंपदा संघने दी । संघको पसंद है, इसलिये चुप है--ऐसा मैं इसे धारण करती हूँ।" (४) उसी वक्त उसे लेकर भिक्षु-संघके पास जा एक कंधेपर उत्तरा-संग करवा भिक्षुओंके चरणोंमें वन्दना करवा उकळं बैठवा हाथ जोळवा उपसंपदा मँगवानी चाहिये- -"(१) आर्यो ! मैं इस नामवाली इस नामवाली आर्याकी उपसंपदापेक्षी (=शिष्या), एक ओर (भिक्षुणी-संघमें) उपसंपदा पाई, भिक्षुणी-संघमें (पूछे गये अन्तरायिक दोषोंसे) शुद्ध हूँ। आर्यसंघसे मैं उपसंपदा माँगती हूँ। आर्य-संघ अनुकंपा करके मेरा उद्धार करे। (२) दूसरी वार भी, आर्यो ! मैं इस नामवाली० । तीसरी वार भी, आर्यो! मैं इस नामवाली।" तब चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे- ज्ञप्तिः। प्र० द्वि० तृ० अनुश्रावण। फिर चतुर समर्थ भिक्षु--पसंद नहीं है वह बोले । ग. (धा र णा)--"इस नामवाली (उम्मेदवार) को इस नामवाली आर्याके प्रवर्तिनीत्वमें संघने उपसंपदा दी। संघको पसंद है, इसलिये चुप है-ऐसा मैं इसे धारण करता हूँ।" ५--उसी समय (समय जाननेके लिये) छाया नापनी चाहिये । ऋतुका प्रमाण बतलाना चाहिये। दिनका भाग बतलाना चाहिये। सं गी ति 'बतलानी चाहिये । भिक्षुणियोंको कहना चाहिये-'इसे तीन निश्र य और आठ अकरणीय वतलाओ।' (४) भोजनसे उठनेके नियम १--उस समय भिक्षुणियाँ भोजनके समय आसनपर (सूत्रोंका) संगायन (=साथ या च ना-- 'छाया, ऋतु और दिनका भाग इन तीनोंको इकट्ठा करनेको संगीति कहते हैं । महादग्ग पृष्ठ १३४-३५ (वृक्षके नीचे निवासको छोळकर) ।