६४-निस्सग्गिय-पाचित्तिय' (२०-४७) (१) कठिन चीवर और चीवर आयुष्मानो ! यह तोस अपराध निस्सग्गिय पाचित्तिय कहे जाते हैं। १-चीवरके २ तैयार हो जानेपर कठिन३ (चोवर )के मिल जानेपर अधिक अधिक दस दिन तक अतिरिक्त (=तीनसे अधिक ) चीवरको ( पास ) रखना चाहिये । इस (अवधि )को अतिक्रमण करनेपर निस्सग्गिय-पाचित्तिय है। २-चीवरके तैयार हो जानेपर कठिनके मिल जानेपर भिक्षुओंको सम्मतिके विना यदि भिक्षु एक रात भी तोनों चीवरोंसे रहित रहे तो निस्सग्गिय-पाचित्तिय है । ३–चीवरके तैयार हो जानेपर कठिन के मिल जानेपर यदि भिक्षुको बिना समयका चीवर (का कपड़ा) प्राप्त हो, तो इच्छा होनेपर भिक्षु उसे ग्रहण कर सकता है । ग्रहण करके (चीवर ) शीवही दस दिन तकमे बना लेना चाहिये । यदि उसको पूरा नहीं कर सकता तो प्रत्याशा होनेपर कमीको पूर्ति के लिये एक मास भर भिक्षु उसे रख छोड़ सकता है। प्रत्याशा होनेपर इससे अधिक यदि रख छोड़े तो निस्सग्गिय-पाचित्तिय है। ४-कोई भिनु अज्ञातिका (=जिससे कि उसका पिता या माताकी ओरसे सात पीढ़ी के भोतर तक कोई संबंध नहीं ) भिक्षुणीसे ( अपने ) पुराने चीवर धुलवाये, रँगवाये या पिटवाये ( कुन्दी कराये ) तो निस्सग्गिय-पाचित्तिय है। ५-जो कोई भिक्षु किसो अज्ञातिक भिक्षुणीके हाथसे बदलौनके अतिरिक्त चोवरको स्वीकार करे तो उसे निस्सग्गिय-पाचित्तिय है। ६–जो कोई भिक्षु किसी अज्ञातक गृहस्थ या गृहस्थिनोसे खास अवस्थाके सिवाय चीवर देनेके लिये कहे तो उसे निस्सग्गिय-पाचित्तिय है। खास अवस्था है, जब कि भिक्षुका चीवर छिन गया हो या खो गया हो । ५ जिन अपराधोंका प्रतिकार संघ, बहुतसे भिक्षु या एक भिक्षुके सामने स्वीकार कर उसे छोड़ देनेपर हो जाता है उन्हें निस्सग्गिय-पाचित्तिय (=नस्सर्गिक प्रायश्चित्तिक ) कहते हैं । २ भिक्षुओंके तीन वस्त्र (1) अन्तरवासक (=लुङ्गी), (२) उत्तरासंग (=चादर), (३) संघाटी (=दोहरी चादर) ५ वर्षावासके. अंतम गृहस्थों द्वारा एक संघाटी प्रदान की जाती है जिसे संघ अपनी अरसे किसी सम्मानित भिक्षुको देता है । इली चीवरको कठिन चीवर कहते हैं, क्योंकि इसकी प्रालि बहुत कठिन है। १-६] ६ [ १७
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