- दुक्कटका दोष हो।" ५२८ ] ४-चुल्लवग्ग [ १०९४८ "०अनुमति देता हूँ आरण्यक भिक्षुको उपदेश (देनेकी प्रार्थना) को स्वीकार करनेकी, और दूसरे स्थानपर प्रतिहार (प्रतीक्षा) करनेका संकेत करनेकी।" 4I ६-~उस समय भिक्षु उपदेश (की प्रार्थना) को स्वीकार कर नहीं उपदेश करते थे। - "भिक्षुओ! उपदेश-न-करना नहीं चाहिये, ०दुक्कट० !" 42 उस समय भिक्षु उपदेशको स्वीकारकर प्रत्याहरण (=पालन करना) नहीं करते थे।- "भिक्षुओ! उपदेशका न-प्रत्याहार नहीं करना चाहिये, ०दुक्कट०।" 43 (४) भिक्षुणियोंको उपदेश सुननेके लिए न जानेपर दण्ड उस समय भिक्षुणियाँ (उपदेशके लिये) बतलाये स्थानपर नहीं जाती थीं 10- "भिक्षुओ ! भिक्षुणियोंको वतलाये स्थानपर न जाना नहीं चाहिये, जो न जाये उसे दुक्कटका दोष हो।" 44 (५) कमरवन्द उस समय भिक्षुणियाँ लम्बे कायवंधन (=कमरबंद) को धारण करती थीं। उन्हींकी पोछ (=फासुका) लटकाती थीं। लोग हैरान होते० थे-जैसे कामभोगिनी गृहस्थ-(स्त्रियाँ) ! "भिक्षुओ! भिक्षुणियोंको लम्बा काय-बंधन नहीं धारण करना चाहिये, दुक्कट ० । ०अनु- मति देता हूँ भिक्षुओंको एक फेरा कायबंधनकी, उसकी पोंछ नहीं लटकानी चाहिये, जो लटकावे उसे 45 (६) सँवारनेके लिए कपळा लटकाना निषिद्ध उस समय भिक्षुणियाँ वी लि व (=वाँसके बने) पट्टकी पोंछ लटकाती थीं, चर्मपट्टकी०, दुस्स (=थान) पट्ट०, दुस्स-वेणी (=कपड़ेको गूंथकर)०, दुस्स-वट्टी (=झालर०), चोल-पट्ट (=साड़ीका चुनाव)०, चोल-वेणी०, चोल-वट्टी०, सूतकी वेणी०, सुतकी वट्टी० । लोग हैरान होते थे---जैसे कामभोगिनी गृहस्थ (स्त्रियाँ) । ०- "भिक्षुओ ! भिक्षुणियोंको वीलिव-पट्ट०, चर्म-पट्ट०, दुस्स-पट्ट०, दुस्स-वेणी०, दुस्स-वट्टी०, चोल-पट्ट०, चोल-वेणी०, चोल-वट्टी०, सूतकी वेणी०, सूतकी वट्टीकी पोंछ नहीं लटकानी चाहिये, जो लड- काये उसे दुक्कटका दोष हो।” 46 (७) सँवारनेके लिये मालिश करना निपिद्ध उस समय भिक्षुणियाँ (गायकी जाँघकी) हड्डीसे जाँघको मसलवाती थीं, गायके हनुक (= (=नीचेके जवड़ेकी हड्डी) से पेंडुलीको थपकी लगवाती थीं, हाथ०, हाथकी मुसुक०, पैर०, पैरके ऊपरी भाग०, ०, जाँघ०, मुख०, दाँतके मसूळेको थपकी लगवाती थीं। लोग हैरान होते थे-जैसे काम- भोगिनी गृहस्थ (स्त्रियाँ) "भिक्षुणियोंको हड्डीसे जाँघको नहीं मसलवाना चाहिये, गायके हनुकसे पेंडुलीको नहीं थपकी लगवानी चाहिये, हाथ०, हाथकी मुसुक०, पैरके ऊपरी भाग०, जाँघ०, मुख०, दाँतके मसूळेमें थपकी नहीं लगवानी चाहिये; जो लगवाये उसे दुक्कटका दोप हो।" 47 (८) मुखके लेप, चूर्ण आदिका निषेध उस समय पड् वर्गी या भिक्षुणियाँ मुखपर लेप करती थीं, मुखकी मालिश करती थीं, मुखपर चूर्ण डालती थीं, मुखको मैनसिलसे लांछित करती थीं, अंगराग (=अवटन) लगाती थीं। लोग हैरान० होते थे-जैसे कामभोगिनी गृहस्थ (स्त्रियाँ) !! - , O 0
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