" ५०४ ] ४-चुल्लवग्ग [ chale थे। न दिशाओंको जानते थे। चोरोंने जाकर उन भिक्षुओंमे यह कहा- "भन्ते ! पीनेका (पानी) है ?" "नहीं है, आवुसो !" "भन्ते ! धोनेका (पानी) है ?" "नहीं है, आवुसो !" "भन्ते! आग है ?" "नहीं है, आवुसो!" "भन्ते ! अरणीका सामान है ? "नहीं है, आवुसो !" "भन्ते ! नक्षत्रोंका मार्ग (मालम) है ?" "नहीं जानते, आवुसो !" "भन्ते ! दिशा (मालूम) है ?" "नहीं जानते, आवुसो!" भन्ते ! आज किस (तारे) से युक्त (चन्द्रमा) है?" "नहीं जानते, आवुसो! तब उन चोरोंने--न इनके पास पीनेका (पानी) है० न दिशाको जानते हैं-कह (सोत्र)- यह चोर हैं भिक्षु नहीं है-(कह) पीटकर चले गये। तब उन भिक्षुओंने यह बात भिक्षुओंसे कही। उन भिक्षुओंने भगवान्से यह बात कही ।- "तो भिक्षुओ! आरण्यक भिक्षुओंके व्रतका विधान करता हूँ, जैसे कि आरण्यक भिक्षुओंको वर्तना चाहिये। "भिक्षुओ! आरण्यक भिक्षुको समयसे उठकर पात्रको थैलेमें रख कंधेपर लटका चीवरको कंधेपर रख जूता पहिन, लकळी-मिट्टीके बर्तन सँभाल, खिळकी-दर्वाजोंको वन्दकर, शयन-आसनसे उतरना चाहिये। अब गाँवमें प्रवेश करना है- (सोच) जूना उतार नीचेकर फटफटाकर थैलेमें रख कंधे लटका तीनों मंडलोंको ढाँकते परिमंडल (चीवर) पहिन कमरवन्दको वाँध चौपेतकर संघाटीको पहिन मुद्धी दे, धोकर पात्र ले ठीकसे---विना जल्दीके गाँवमें प्रवेश करना चाहिये । "निहुरे नहीं घरके भीतर जाना चाहिये । "गाँवसे निकलकर पात्रको थैलेमें रख कंधेसे लटका, चीवरको समेट शिरपर कर, जूता पहिन चलना चाहिये। "भिक्षुओ! आरण्यक भिक्षुको पीने धोनेके पानीको रखना चाहिये। आग रखनी चाहिये। (सामान-) सहित अरणी रखनी चाहिये। कत्तरदंड (वैसाखी) रखना चाहिये। सभी या कुछ नक्षत्रोंके मार्ग सीखने चाहिये । २ दिशाओंका जाननेवाला होना चाहिये। "भिक्षुओ! यह आरण्यक भिक्षुओंके व्रत हैं, जैसे०।" , ६४-आसन, स्नानगृह और पाखानेके नियम (१) शयन-पासनके व्रत उस समय वहुतसे भिक्षु खुली जगहमें चीवर (सीने) का काम कर रहे थे। प ड वर्गीय भिक्षओं ! १देखो पीछे ८१२।२ पृष्ठ ५०० । 'देखो ऊपर।
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