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८१२।२] भोजनके समयके नियम [ ५०१ चाहिये; खूब संयम (=सुसंवर) के साथ०, नीची निगाह करके०, शरीरको उतान नहीं करके घरके भीतर जाना चाहिये, उज्जग्घिका (=हँसी, मज़ाक) के साथ नहीं०, चुपचाप घरमें जाना चाहिये, देह भांजते नहीं० ; बाँह भाँजते नहीं, शिर हिलाते नहीं, खम्भेकी तरह खळे नहीं०, (देहको) अवगुं- ठित (किये) नहीं०, निहुरे नहीं, (गृहस्थके) घरके भीतर जाना चाहिये। सुप्रतिच्छन्न हो घरके भीतर बैठना चाहिये, खूब संयमके साथ०, नीची निगाह करके, ०, अवगुण्ठित नहीं० ; पलथी मारकर नहीं०, स्थविर भिक्षुओंको धक्का देकर नहीं०, नये भिक्षुओंको आसनसे हटाकर नहीं बैठना चाहिये, संघाटी बिछाकर नहीं बैठना चाहिये, पानी लेते वक्त दोनों हाथसे पात्र पकळ पानीको लेना चाहिये। नवाकर अच्छी तरह बिना घुसे पात्रको धोना चाहिये । यदि पानी फेंकनेका वर्तन (= उदक-प्रतिग्राहक) हो, तो नवाकर (धोये पानी)को उदक-प्रतिग्राहकमें डाल देना चाहिये, उदक-प्रतिग्राहकको नहीं भिगोना चाहिये। यदि उदक-प्रतिग्राहक नहीं हो तो नीचे करके भूमिपर पानी डालना चाहिये; जिसमें कि पासके भिक्षुओंपर पानीका छींटा न पळे, संघाटीपर पानीका छींटा न पळे । भात परोसते वक्त दोनों हाथोंसे पात्र को पकळकर भातको लेना चाहिये, सूप (= तेमन) के लिये जगह बनानी चाहिये । यदि तेल या उत्तरि- भंग (=पीछेका स्वादिष्ट भोजन) हो तो स्थविरको कहना चाहिये-सवको वरावर दीजिये। सत्कार- पूर्वक भिक्षान्नको ग्रहण करना चाहिये, पात्रकी ओर ख्याल रखते भिक्षान्नको ग्रहण करना चाहिये। मात्राके अनुसार सूपके साथ भिक्षान्नको० । समतल (रक्खे) भिक्षान्नको० । जब तक सबको भात नहीं पहुँच जाये, स्थविरको नहीं खाना चाहिये । सत्कारके साथ भिक्षान्नको खाना चाहिये, पात्रकी ओर ख्याल रग्बते । एक ओरसे० । मात्राके अनुसार सूपके साथ० । "पिड' (=स्तूप पुरिया) को मीज मीजकर नहीं खाना चाहिये। अधिवकी इच्छासे दाल या भाजी ( व्यंजन) को भातसे नहीं ढाँकना चाहिये। नीरोग होते अपने लिये दाल या भातको माँगकर नहीं भोजन करना चाहिये। न अवज्ञा (=उझान) के ख्यालये दूसरेके पात्रको देखना चाहिये । न बहुत वळा ग्रास बनाना चाहिये। ग्रामको गोल बनाना चाहिये। ग्रामको बिना मुख तक लाये मुखके द्वारको नहीं खोलना चाहिये । भोजन करते समय सारे हाथको मुंहमें नहीं डालना चाहिये । ग्राम पळे. मुग्यसे बात नहीं करनी चाहिये । ग्रानको उछाल उछालकर नहीं खाना चाहिये। गालको काट काटकर नहीं खाना चाहिये । गाल फुला पलाकर नहीं खाना चाहिये । हाथ जाल. साळकर नहीं खाना चाहिये । जटिव दिनकर नहीं खाना चाहिये । जग निकाल निकालकर नहीं खाना चाहिये । सप सपकार नहीं माना चाहिये। मुगुलानर नहीं जाना चाहिये। हाय बाट चाटकर नहीं खाना चाहिये। मिलाने भिन्न-पातिमोक्स (15 (पृष्ट ३४) ।