७-संघभेदक-स्कंधक १--देवदत्तकी प्रवज्या ऋद्धि-प्राप्ति और सम्मान । २--देवदत्तका अजातशत्रुको बहकाना, बुद्धपर आक्रमण, और संघमें फूट डालना। ३--संघराजी, संघभेद और संघसामग्रीकी व्याख्या । ४--नरकगामी और अचिकित्स्य व्यक्ति । ६१-देवदत्तकी प्रव्रज्या ऋद्धि-प्राप्ति और सम्मान १-अनूपिय (१) अनुरुद्ध आदिके साथ देवदत्तकी प्रव्रज्या उस समय भगवान् म ल्लों के कस्वे (=निगम) अनू पि या में विहार करते थे। उस समय कुलीन कुलीन शा क्य - कु मा र भगवान्के प्रबजित होनेपर अनु-प्रबजित हो रहे थे। उस समय म हा ना म गावय और अनु रु द्ध-शाक्य दो भाई थे। अनुरुद्ध सुकुमार था, उसके तीन महल थे—एक जाळेके लिये, एक गर्मीके लिये, एक वर्षाके लिये। वह वर्षाके चार महीनोंमें वर्पा-प्रासादके ऊपर अ-पुरुप-वाद्योंके साथ सेवित हो, प्रासादके नीचे न उतरता था । तव महानाम शाक्यके (चित्तमें) हुआ-आज-कल कुलीन कुलीन शाक्यकुमार भगवान्के प्रव्रजित होनेपर अनुप्रवजित हो रहे हैं। हमारे कुलसे कोई भी घर छोड़ बेघर हो प्रवृजित नही हुआ है । क्यों न मैं या अनुरुद्ध प्रव्रजित हों। तब महानाम, जहाँ अनुरुद्ध शाक्य था, वहाँ गया। जावर अनुरुद्ध शाक्यसे बोला-"तात ! अनुरुद्ध ! इस समय० हमारे कुलसे कोई भी० प्रव्रजित नहीं हुआ। इसलिये तुम प्रबजित हो या में प्रव्रजित होऊँ।" "मैं सुकुमार हूँ, घर छोळ वेघर हो प्रवृजित नहीं हो सकता, तुम्ही प्रव्रजित होओ।" "तात ! अनुरुद्ध ! आओ तुम्हें घर-गृहस्थी समझा दूं।—पहिले खेत जोतवाना चाहिये। जोनवाकर वोवाना चाहिये । वोवाकर पानी भरना चाहिये । पानी भरकर निकालना चाहिये, निकाल कर मुखाना चाहिये, मुखवाकर कटवाना चाहिये, कटवाकर ऊपर लाना चाहिये, ऊपर ला सीधा कर- वाना चाहिये, नीधा करा मर्दन करवाना (=मिमवाना) चाहिये, मिसवाकर पयाल हटाना चाहिये। पयालको हटाकर भूनी हटानी चाहिये । भूसी हटाकर फटकवाना चाहिये। फटकवाकर जमा करना चाहिये । एसी प्रकार अगले वर्पोमें भी करना चाहिये । काम (=आवश्यकतायें) नाग नहीं होते, कामोंका अन्त नहीं जान पळता।" "कब काम ग्यतम होंगे, कब कामोंका अन्त जान पळेगा? कब हम वे-फिकर हो, पाँच प्रकारके कामोपभोगोंने युक्त हो...विचरण करेंगे?" "नात ! अनुरुद्ध ! काम खतम नहीं होते, न कामोंका अन्त ही जान पळता है । कामोंको बिना बनम किये ही पिता और पितामह मर गये।" "तुम्ही पर गृहन्धी नॅनालो. हम ही प्रवजित होवेंगे।" दर अनुगड गाय जहां माता थी वहाँ गया, जाकर माता दोला-
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