६०५।३ ] पाँच अ-विभाज्य [४७१ "भिक्षुओ! यह पाँच अदेय हैं, इन्हें संघ, गण या व्यक्ति (किसीको) देनेका (हक) नहीं है; दे डालनेपर भी यह बिना दिये जैसे होते हैं। जो दे उसे थुल्लच्चयका दोष हो।" I4I "कौनसे पांच? (१) आराम और आरामके मकान, यह पहिले अदेय हैं. जो दे उसे थुल्ल- च्चयका दोष हो। (२) विहार और विहारका मकान०। (३) चौपाई-चौकी गद्दा तकिया० । (४) लोह-कुंभक, लोह-माणक, लोह-वारक, लोह-कटाह, वसूला, फरसा, कुदाल, खनती। (५) वल्ली, वेणु, मुंज, वल्वज (=भाभळ), तृण, मिट्टी, लकळीका वर्तन, मट्टीका वर्तन- यह पाँच अदेय हैं।" ४-कीटागिरि तब भगवान् श्रा व स्ती में इच्छानुसार विहारकर सारिपुत्र-मौद्गल्यायन तथा पाँचसौ महान् भिक्षुसंघके साथ जिधर की टा गि रि है, उधर चारिकाके लिये चल पळे । अ श्व जि त् और पुनर्वसु भिक्षुओंने सुना-भगवान सारिपुत्र मौद्गल्यायन तथा पाँचसौ महान् भिक्षु-संघके साथ कीटागिरि आ रहे हैं। "तो आवुसो ! (आओ) हम सब संघके शयन-आसनको बाँट लें। सा रि पुत्र मौ द् ग ल्या य न पाप (चुरी)-इच्छाओंसे युक्त हैं। हम उन्हें शयन-आसन न देंगे।" यह सोच उन्होंने सभी सांघिक शयन-आसनोंको बाँट लिया। तब भगवान् क्रमशः चारिका करते, जहाँ कीटागिरि है, वहाँ पहुँचे। तब भगवान्ने बहुतसे भिक्षुओंको कहा- "जाओ भिक्षुओ! अश्वजित् पुनर्वसु भिक्षुओंके पास जाकर ऐसा कहो—'आवुसो ! ० भग- वान् आ रहे हैं। आवुसो ! भगवान्के लिये शयन-आसन ठीक करो, संघके लिये भी, और सारिपुत्र मौद्गल्यायनके लिये भी'।" "अच्छा भन्ते !" कह. . .उन भिक्षुओंने जाकर अ श्व जि त्, पुनर्वसु भिक्षुओंसे यह कहा- "०"। (उन्होंने कहा) "आदुसो ! (यहाँ) सांघिक शयन-आसन नहीं है। हमने सभी वाँट लिया। स्वागत है आवुसो ! भगवान्का । जिस विहारमें भगवान् चाहें, उस विहारमें वास करें। (किन्तु) पापेच्छु हैं सारिपुत्र मौद्गल्यायन०, हम उन्हें शायनासन नहीं देंगे।" "क्या आवुतो! तुमने सांघिक शयनासन (=घर, सामान) वाँट लिया ?" "हाँ आवुस!" तव उन भिक्षुओंने जाकर यह वात भगवान्से कही। भगवान्ने धिक्कारकर भिक्षुओंसे कहा- (३) पाँच अ-विभाज्य "भिक्षुओ! यह पांच अ-विभाज्य हैं, संघ-गण या पुद्गल (=व्यक्ति) द्वारा न वाँटने योग्य हैं। बांटनेपर भी यह अविभक्त (=विना बॅटे) ही रहते हैं; जो बाँटता है; उसे स्थूल-अत्ययका अपराध लगता है । कौनते पांच? (१) आराम या आराम-वस्तु (=आरामका घर)...। (२) विहार या विहार-वस्तु...। (३) मंच, पीठ, गद्दा, तकिया...। (४) लोह-कुंभ, लोह-भाणक, लोह-वारक, लोह- वाटाह, वासी (=बेमूला), फरसा, कुदाल, निखादन (खननेका औज़ार)...। (५) वल्ली, बाँस, मुंज, वल्दज, तृण, मिट्टी, लकड़ीका वर्तन, मिट्टीका वर्तन...." 142 , 'सारे संघदी सम्पत्ति, एक व्यक्ति नहीं।
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