! ४६२ ] ४-चुल्लवग्ग [ ३२ "वस, गृहपति ! तू इस खाली जगहको मत ढंकवा। यह ग्वाली-जगह (=अवकाग) मुझे दे. यह मेरा दान होगा।" तव अनाथ-पिडिक गृहपनिने 'यह जेन कुमार गण्य-मान्य प्रसिद्ध मनुष्य है। इस ध म - विनय (धर्म) में ऐसे आदमीका प्रेम होना लाभदायक है।' (मोत्र) वह स्थान जेन गजकुमारको दे दिया। तब जेत-कुमारने उस स्थानपर कोठा बनवाया । अनाथ-पिडिक गृहपतिने नवनमें बिहार (=भिक्षु- विश्राम-स्थान) वनवाये। परिवेण (=आँगन सहित बर) बनवाये। कोठरियाँ । उपस्या न - गा ला ये (=सभा-गृह) ० । अग्नि - गा ला यें (पानी-गर्म करनेक घर) । कल्पिक - कुटियाँ (=भंडार) । पाखा ने ०। पे गा व वा ने० । चंक्रमण (टहलनेके स्थान०) । नंक्रमण- शालायें। प्या उ०। प्या उ-घर ० । जंताघर (स्नानागार) ० | जन्ता घर - गा लायें । पु प्क रि णि याँ० । मंड प० । -वैशाली (२) नवकर्म भगवान् रा ज गृह में इच्छानुसार विहारकर, जिधर वै गा ली थी, उधर धारिका (गमत) को चल पळे । क्रमशः चारिका करते हुये जहाँ बैगाली थी, वहाँ पहुँचे। वहां भगवान् बंगाली में म हा व न की कू टा गा र - गा ला में विहार करते थे। उस समय लोग मत्कार-पूर्वक न व - कर्म (-नये घरका निर्माण) कराते थे। जो भिक्षु नव-कर्मकी देख-रेख (=अधिष्ठान) करते थे, वह भी (१) ची ब र (=बस्त्र), (२) पिड. पात (=भिक्षान्न), (३) य य ना म न (घर), (४) ग्ला न - प्रत्य य (=रोगि-पथ्य) भैप ज्य (=औपध) इन प रि का रों से मत्कृत होते थे। तब एक दरिद्र तं तु का य (=जुलाहा) के (मनमें) हुआ-"यह छोटा काम न होगा, जो कि यह लोग मत्कार-पूर्वक नव-कर्म कराते हैं; क्यों न मैं भी नव- कर्म बनाऊँ ?" तव उस गरीब तन्तुवायने स्वयं ही कीचळ तैयारकर, ईटें चिन, भीत बळीकी। अनजान होनेसे उसकी बनाई भीन गिर पळी । दूसरी बार भी उम गरीव । तीसरी बार भी उन गरीब० । तब वह गरीव तन्तुवाय. . .ग्विन्न. . होता था--"इन शाक्य-पुत्रीय श्रमणोंको जो चीवर ० देते हैं : उन्हीके नव-कर्मकी देख-रेख करते है। में गरीब हूँ इसलिये कोई भी मुझे न उपदग करता है, न अनुगागन करता है, और न नव-कर्मकी देख-रेग्य करता है।" भिक्षुओंने उस गरीब तन्तुबायको. . .ग्विन्न. . होते मुना। तब उन्होंने इस बातको भगवान्ग कहा । तब भगवान्ने इमी संबंधमें, इसी प्रकरण में, धार्मिक-कथा कहकर, भिक्षुओंको आमंत्रित किया-- "भिक्षुओ ! न ब - कर्म देने की आना करता हूँ। न व - क मि क (-विहार बनवानेका निरीक्षक) भिक्षुको बिहारकी जल्दी तैयारीका न्याल करना चाहिये। (उने) टे फटेकी मरम्मत करनी चाहिये । "और भिक्षुओ ! (नव-कमिक शिक्ष) इस प्रकार देना चाहिये । पहिले भिक्षुमे प्रार्थना करनी चाहिये। फिर एक चतर ममर्थ निन-मंत्रको मचित करें। "नले ! मंच मेरी मुने । यदि मंशको पनन्द है. नो अम्क गह-पतित विहारका नव-कर्म. अमर भिक्षुको दिया जाये। यह लि (निवेदन) हैं। "भले ! मंत्र मलने। अमल गह-पतिक किवाका नव-कर्म अमर निक्षको दिया जाता जिन आवामान्को मान्य है. विरह-नक विहारया नव-कर्म अमक निक्षको दिया गाय. वर नप रहे: जिम मान्य न हो, बोले।" "दुसरी बार।" "नी कार भी..!" "नको वा दिसनामा दिने माप ---
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