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४६० ] ४-चुल्लबग्ग | ६३१ (=फूला न समाता) हो, जहाँ भगवान् थे, वहाँ गया। जाकर भगवान्के चरणोंमें गिरमे पळकर बोला-- "भन्ते ! भगवान्को निद्रा सुखसे तो आई? “निर्वाण-प्राप्त ब्राह्मण सर्वदा सुखसे सोता है। जोकि शीतल और दोप-रहित हो काम वासनाओंमें लिप्त नहीं होता।। सारी आसक्तियोंको खंडितकर हृदयसे डरको हटाकर । चित्तकी शांतिको प्राप्तकर उपशांत हो (वह) सुखसे सोता है।" तब भगवान्ने अनाथ-पिंडिक गृहपतिको आनुपूर्वी' कथा० कहीं। जैसे कालिमा-रहित शुद्ध- वस्त्र अच्छी तरह रंग पकळता है, ऐसे ही अनाथपिडिक गृहपतिको उमी आमनपर 'जो कुछ समुदय-धर्म है वह निरोध-धर्म है', यह वि-रज-वि-मल धर्म - च क्षु उत्पन्न हुआ। तब दृष्ट-धर्म-प्राप्त-धर्म- विदित-धर्म-पर्य व गा ढ़-धर्म, संदेह-रहित, वाद-विवाद-रहित, गास्ताके-गासन (=बुद्ध-धर्म)में स्वतंत्र हो, अनाथ-पिंडिक गृहपतिने भगवान्से कहा- "आश्चर्य ! भन्ते ! आश्चर्य ! भन्ते ! जैसे औंधेको सीधा कर दे, ढंकको उचाळ दे, भुलेको रास्ता वतला दे, अंधकारमें तेलका प्रदीप रख दे जिसमें आँखवाले रूप देखें; ऐसेही भगवान्ने अनेक प्रकारमे धर्मको प्रकाशित किया। मैं भगवान्की शरण जाता हूँ, धर्म और भिक्षु-संघकी (शरण जाता हूँ)। आजने मुझे भगवान् सांजलि शरण-आया उ पा स क ग्रहण करें। भगवान् भिक्षु-संघके सहित कलका मेरा भोजन स्वीकार करें।" भगवान्ने मौनसे स्वीकार किया। तब अनाथ पिंडिकल भगवान्की स्वीकृतिको जान, आसनमे उठ, भगवान्को अभिवादन कर, प्रदक्षिणा कर, चला गया। राजगृहक-श्रेष्ठीने सुना-अनाथ-पिंडिक गृह-पतिने कलको भिक्षु-संघ-सहित बुद्धको निमंत्रित किया है। तब राजगृहक-श्रेष्ठीने अनाथ-पिंडिक गृह-पतिसे कहा- “तूने गृह-पति ! कलके लिये भिक्षु-संघ-सहित बुद्धको निमंत्रित किया है, और तू आ गं तु के (=पाहुना=अतिथि) है। इसलिये गृह-पति ! मैं तुझे खर्च देता हूँ; जिसमे तू बुद्ध-सहित भिक्षु-संघके लिये भोजन (तैयार) करे ?" "नहीं गृहपति ! मेरे पास खर्च है, जिससे में बुद्ध-सहित भिक्षु-नंघका भोजन (तैयार) करूँगा।" राज-गृहके नै ग म ने मुना-अनाथ पिडिक० । तब ग़जगृहके नैगमने अनाथ - पि डि क० को यों कहा-"०मैं तुझे खर्च० देता हूँ।' "नहीं आर्य ! मेरे पास खर्च है।" मग ध - रा जल्ने सुना-। तब मगध-राज ने अनाथ-पिडिक०को...कहा "मैं तुने वर्च० देता हूँ।" "नहीं देव! मेरे पास खर्च है।" नब अनाथ-पिडिव गृहपतिने उम गतके बीत जानेपर, गजगृहके श्रेष्ठीके मकानपर उनम पर भोज्य तयार करा, भगवान्को वालकी सूचना दिलवाई "काल है भन्ते ! भोजन तैयार हो गया। नब भगवान् पूर्वाणके समय मु-आच्छादित हो, पात्र चीवर हाथमें ले. जहाँ राजगृहके श्रेष्ठीका मकान "पृष्ठ ८४ । २ श्रेष्ठी' या नगर-मेट उम समयका एक अवैतनिदः राजकीय पद था। इसी तरह 'नं गम एक पद था; जो शायद 'श्रेष्ठी में ऊपर था।