४३८ ] ४-चुल्लवग्ग [ ५४३ 14 O O
लिये चल दिये। क्रमशः चारिका करते जहाँ श्रावस्ती है, वहाँ पहुँचे। वहाँ भगवान् श्रावस्तीमें अनाथ- पिंडिकके आराम जे त व न में विहार करते.थे। तब वि शा खा - मृ गा र मा ता घळे, कतक (झाँवाँ) और झाळू लिवा जहाँ भगवान् थे, वहाँ गई; जाकर भगवान्को अभिवादनकर एक ओर बैठ गई। एक ओर बैठी विशाखा मृगारमाताने भगवान्से यह कहा- "भन्ते ! भगवान् मेरे घळे, कतक और झाळूको स्वीकार करें, जो कि चिरकाल तक मेरे हित- सुखके लिये हो।" भगवान्ने घळे और झाळूको ग्रहण किया, किंतु कतकको नहीं ग्रहण किया। भगवान्ने विशाखा मृगारमाताको धार्मिक कथा द्वारा.. समुत्तेजित संप्रहर्पित किया। ० भगवान्को अभिवादनकर प्रदक्षिणा कर चली गई। तब भगवान्ने इसी संबंधमें इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह, भिक्षुओंको संबोधित किया।- अनुमति देता हूँ घळे और झाळूकी। भिक्षुओ ! कतकका इस्तेमाल न करना चाहिये, दुक्कट ०। 183 अनुमति देता हूँ, (पत्थरके) डले, कठल (=काठ) और समुद्रफेन-इन तीन प्रकारके पैर-घिसनाकी।" 184 (२) पंखा तब विशाखा मृगारमाता बेने और ताळके पंखेको ले जहाँ भगवान् थे वहाँ गई। ०।- "भन्ते ! भगवान् मेरे बेने और ताळके पंखेको स्वीकार करें; जो कि चिरकाल तक मेरे हित- सुखके लिये हो।" भगवान्ने वेने और ताळके पंखेको स्वीकार किया। ०।- • अनुमति देता हूँ वेने और ताड़के पंखेकी ।” 185 उस समय संघको मच्छर हाँकनेकी विजनी मिली थी। भगवान्से यह बात कही।- अनुमति देता हूँ, मच्छरकी विजनीकी।" 186 चँवरकी विजनी (चमरीकी विजनी) मिली थी।- "भिक्षुओ! चँवरकी विजनी नहीं धारण करनी चाहिये, • दुक्कट ० । 187 "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ तीन प्रकारकी विनियोंकी--छालकी, खसकी और मोरपंख- की।" 188 (३) छला उम समय संघको छत्ता मिला था।०-- अनुमति देता हूँ छत्तेकी।" 189 उम समय पड्वर्गीय भिक्षु छत्ता लेकर टहलने थे। उस समय एक (बौद्ध) उपामक बहुतने यात्री आ जी व कों के अनुयायियोंके माय बागमें गया था। उन आजीवक-अनुयायियोंने दूसरे पड्वर्गीय भिक्षुओंको छत्ता धारण किये आते देवा । देवकर उस उपासकमे यह कहा- "आवमो! यह तुम्हारे भदन्त हैं छना धारण करके आ रहे हैं, जैसे कि ग ण क म हा मा न्य (=हिनाब निरीक्षक) !!" "आर्यों ! यह भिक्षु नहीं हैं, यह परिद्राजक हैं।" 'भिक्षु है, निक्ष नहीं है इसके लिये उन्होंने बाजी (=अद्भुत) लगाई । तब पासमें आनेपर परिवाजक पहिचानकर बन पानय गन होता था-'कमे भदन छना धारण कर टहलने है ! 11 O O 14 0