५०१।११ ] चीवर [ ४२५ 'पात्रको नहीं लटकाना चाहिये; ०दुक्कट 45 १८-उस समय भिक्षु चारपाईपर पात्र रख देते थे, याद न रहनेसे चारपाईपर वैठते समय उतरकर पात्र टूट जाता था। ०।- "०पात्रको चारपाईपर न रखना चाहिये, दुक्कट०।” 46 १९-०चौकीपर पात्र रख देते थे, याद न रहनेसे० । ०।-- "०पात्रको चौकीपर न रखना चाहिये, दुक्कट० 47 २०-उस समय भिक्षु पात्रको अंक (=गोद) में ले रखते थे, याद न रहने ० । ० ।-- "अंकमें पात्र नहीं रखना चाहिये, दुक्कट 01" 48 २१–० छत्तेपर पात्रको रख देते थे, आँधी आनेपर छ त्ते के उठ जानेसे पात्र गिरकर टूट 0 जाता था। ०।- "o 14 O । o olo o 192 छत्तेपर पात्रको न रखना चाहिये, ० दुक्कट ० ।" 49 २२-उस समय भिक्षु पात्रको हाथमें लिये किवाळको खोलते थे, किवाळसे लगकर पात्र टूट जाता था। ०।-- • पात्रको हाथमें ले किवाळ न खोलना चाहिये, • दुक्कट 1" so २३--उस समय भिक्षु तूंबेके खप्परको ले भिक्षा मांगने जाते थे । लोग हैरान ० होते थे-- जैसे कि तीथिक । ०।- तूंवके खप्परमें भिक्षा मांगने नहीं जाना चाहिये ; ० दुक्कट ० । SI २४--० घळेके खप्परमें जैसे तीथिक । ०।- " ० घळेके खप्परमें भिक्षा मांगने नहीं जाना चाहिये; ० दुक्कट (११) चीवर १--उस समय एक भिक्षु सर्वपांसुकूलिक (=जिसके सभी कपळे रास्तेके फेंके चीथळोंको यीकर बने हों) था, उसने मुर्देवी खोपळीका पात्र धारण किया । एक स्त्री देख डरके मारे चिल्ला उटी--'अब्/ मे ! अन्धुं मे !! यह पिशाच है रे !! !' लोग हैरान • होते थे-कैसे शाक्य- पुत्रीय श्रमण मुर्देवी खोपळीके पात्रको धारण करेंगे, जैसेकि पियाचिल्लकामें। भगवान्से यह बात कहीं ।-- मुर्दे की लोपळीका पात्र नहीं धारण करना चाहिये, ० दुक्कट !" 53 भिक्षुओ ! सर्व पांसुकूलिक नहीं होना चाहिये, • दुक्कट 154 --उस समय भिक्षु च ल कों (=चान कर फेंकी चीजों को भी) (खाकर फंकदी गई) नयोको भी, जूठे पानीको भी पात्रमें ले जाते थे । लोग हैरान ० होते थे—यह याक्यपुत्रीय भ्रमण जिससे बात है, वही इनका प्रतिग्रह (दान) है । ०।- पानमें चलक, हड्डी (और) जूठे पानीको नहीं ले जाना चाहिये, • दुक्कट ० । st : अनुमति देता है, प्रतिमहकी ।"55 --उन सगल निभु हामते फाळकर चीवरको नीते थे, चीवर ठीक नहीं (=दिलोम) हाता गवान्ने यह बात नही ।- " अनुमति देता हूँ सत्यद (वची) और न म त क (=दन्त्र-दंड) नी ।"56 .. O 'दान हिला शब्द (-अकथा) ।
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