४०४ ] ४-चुल्लवग्ग [ $?19 से धार्मिक होता है--(१) (दोपी व्यक्ति) अशुचि होता है; (२) लज्जाहीन होता है; (३) अनु- वाद (= निन्दा)-सहित होता है; (४) उस व्यक्तिका तत्पापीयसिक कर्म संघ व र्म से करता है; (५) स म ग्र हो करता है। 0189 (ग) नि य म-वि रु द्ध -"भिक्षुओ! तीन बातोंसे युक्त तत्पापीयसिक कर्म अधर्म कर्म, अविनय कर्म ठीकसे न सम्पादित किया (कहा जाता) है--(१) अनुपस्थितिमें (= अ-संमुख) किया गया होता है; विना पूछे किया गया होता है। प्रतिज्ञा कगये विना किया गया होता है; (२) अ धर्म...से किया गया होता है; (और) (३) वर्ग से किया गया होता है।....२ 190 (घ) नि य मा न सा र---- -"भिक्षुओ! तीन वातोंगे युवत तत्पापीयसिक कर्म धर्मकर्म, विनय- कर्म० (कहा जाता) है--(१) उपस्थितिमें०, (२) पूछकर०, (३) प्रतिज्ञा करा० । ० 191 (ङ) नि य म-वि रु द्ध--- --"भिक्षुओ! तीन बातोंसे युक्त तत्पापीयसिक कर्म धर्मकर्म, विनय- कर्म, और सुसंपादित (कहा जाता) है- "१--(१) सामने किया गया होता है, (२) पूछतांछकर किया गया होता है; (३) प्रतिज्ञात कराकर किया गया होता है।०४ 192 (च) दंड नी य व्य क्ति-"भिक्षुओ ! तीन वातोंसे युक्त भिक्षुको चाहनेपर (= आ कं ख मा न) संघ तत्पापीयसिक कर्म करे। ०५।" 93 छ आकंखमान समाप्त ३ (छ) दं डि त व्य क्ति के कर्त व्य-" -"भिक्षुओ! जिस भिक्षुका तत्पापीयसिक कर्म किया गया है, उसे ठीकसे बर्ताव करना चाहिये, और वह ठीक बर्ताव यह है--(१) उपसम्पदा न देनी चाहिये; ०६ (१८) भिक्षुओंके साथ सम्मिश्रण नहीं करना चाहिये।” 94 अट्ठारह तत्पापीयसिक कर्मके व्रत समाप्त तब संघने उवाळ भिक्षुका तत्पापीयसिक कर्म किया। (६) तिणवत्थारक उस समय भंडन, कलह, विवाद करते भिक्षुओंने बहुतसे श्रमण-विरोधी भा मि त प रि क न्त (=कळी चुभती वात)अपराध किये थे। तब उन भिक्षुओंको यह हुआ--'भंडन० करते हमने बहुतगे श्रमण विरोधी ०अपगध किये हैं। यदि हम इन आपत्तियोंको एक दूसरेके साथ प्रतिकार कगयें, तो शायद यह अधिकरण (= झगळा)और भी कठोरता, प्रबलताको प्राप्त हो और फूटका कारण बन जाये। (अव) हमें कैसे करना चाहिये ?' भगवान्से यह बात कही।-- "यदि भिक्षुओ! विवाद करते भिक्षुओंने बहुतमे श्रमणविरोधी० अपगध किये हैं, और यदि वहाँ भिक्षुओंको यह हो--यदि हम इन आपत्तियोंको एक दूसरेके साथ प्रतिकार करायें, तो गायद 'देखो महावग्ग ९९१ पृष्ठ २९८ । तर्जनीय-कर्म महावग्ग ९६४१ (पृष्ट ३११) की भाँति बिस्तार करना चाहिये । देखो चुल्ल १९१३ पृष्ट ३४२ । "देखो चुल्ल १९११४ पृष्ट ३४३ ।
- देवो चुल्ल १९११४-६ पृष्ठ ३४३-४ । 'देखो चुल्ल १११६ पृष्ट ३४४ ।