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४०२ ] ४-चुल्लवग्ग [ ४१२।४ १ 60 २-(१) “एक भिक्षुने सं घा दि से स अपराध-किया होता है; उसे संव० चोदित करता है-'आयुष्मान्ने संघादिसेसका अपराध किया है ?' वह ऐसा कहता है-'आवुसो ! मैंने० पाराजिक अपराध किया है।' उसे (यदि) संघ पाराजिकका (दंड) करे, तो यह प्रतिज्ञातकरण अधार्मिक है ।०१ 141 ३-(१) "० थुल्लच्चयका अपराध किया है, 1 48 ४-(१) "० पाचित्तिय०१ 155 ५-(१) ० प्रतिदेशनीय०१ । 62 दुक्कट०१ 169 -(१) "० दुर्भाषित०१ । 76 "-भिक्षुओ! इस प्रकार अधार्मिक प्रतिज्ञातकरण होता है।" (ग) नि य मा नु सा र प्रति ज्ञा त क र ण-कैसे भिक्षुओ ! प्रति ज्ञा त क र ण धार्मिक होता है ?- (क) ( १ ) “एक भिक्षु पाराजिक अपराध किया होता है, उसे संघ० चोदित करता है- 'आयुष्मान्ने पाराजिक अपराध किया है ?' वह ऐसा कहता है-'हाँ आवुसो! मैंने पाराजिक अपराध किया है। उसे (यदि) संघ पाराजिकका (दंड) करे, तो यह प्रतिज्ञातकरण धार्मिक है । 77 (२) ० संघादिसेस० 178 (३) "० थुल्लच्चय० । 79 (४) "० पाचित्तिय० । 80 (५) "० प्रतिदेशनीय० । 81 '० दुक्कट० 182 (७) दुर्भापित० । 83 "-भिक्षुओ! इस प्रकार प्रतिज्ञातकरण धार्मिक होता है।" (४) यद्भूयसिक उस समय भिक्षु संघके बीच भंडन-कलह, विवाद करते एक दूसरेको मुखल्पी शक्ति पीड़ित कर रहे थे। उस अधिकरण (-झगड़े) को शान्त न कर सकते थे। भगवान्से यह बात कही।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, ऐसे अधिकरणको य द् भू य सि का (= बहुमत) से शान्त करने की।" 84 (क) श ला का ग्र हा प क की यो ग्य ता और चु ना ब-"भिक्षुओ! पाँच बातोंमे युक्त भिक्षुको श ला का ग्र हा प करे चुनना (=सम्मंत्रण मिलकर राय देना) चाहिये-(१) जो न छ न्द (= स्वेच्छाचार) के रास्ते जानेवाला होता है; (२) न द्वेष०; (३) न मोह; (४) न भय०; (५) जो गृहीत-अगृहीत (=लिये-बेलिये) को जानता है । 85 "भिक्षुओ! इस प्रकार सम्मं त्र ण (=चुनाव) करना चाहिये-पहिले उस भिक्षुसे पूछ- कर चतुर समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे- पाराजिककी भाँति यहाँ छ कोटि तक पाठ है । सम्मति उस समय रंगीन लकळीकी शला- काओंमें ली जाती थी। शलाका वितरण करनेवालेको शलाकाग्रहापक कहते थे। देखो महावग्ग ९९१ पृष्ठ २९८ ।