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1 २९५ ] आह्वानार्ह [ ३७१ भिक्षुको चौथा बना परिवास दे , मूल से प्रति क र्पण करे, मा न त्व दे या बीसवाँ (वना) आह्वान करे, तो वह अकर्म है (=अन्याय) है, करणीय नहीं है ।" 6 मूलसे प्रतिकर्षणाहके (चौरानबे) व्रत समाप्त ६३-सानत्त्व दण्ड पाये भिक्षुके कर्त्तव्य उस समय मानत्वाह (= मानत्व दंड देने योग्य) भिक्षु अदंडित भिक्षुओंके अभिवादन० स्नान करते वक्त पीठ मलना (इन कामोंको) लेते थे ।० "भिक्षुओ ! मानत्वाह भिक्षुको ठीकसे वर्तना चाहिये ; और वे ठीकसे बर्ताव यह हैं- "(१) उपसम्पदा न देनी चाहिये ; (९४) यदि भिक्षुओ ! मा न त्वा ह भिक्षुको चौथा बना परिवास दे, मानत्वाह करे, मानत्व दे या बीसवाँ (बन) आह्वान, करे, तो वह अकर्म (=न्याय-विरुद्ध) है करणीय नहीं है।”7 मानत्त्वाह के (चौरानबे) व्रत समाप्त ६४-मानत्त्वचार दण्ड पाये भिक्षुके कर्त्तव्य उस समय मा न न्व चा रि क ( जिसको मानत्व चारका दंड दिया गया हो) भिक्षु अदंडित भिक्षुओंके अभिवादन० स्नान करते वक्त पीठ मलना ( इन कामोंको ) लेते थे "भिक्षुओ ! मानत्व-चारिक भिक्षुको ठीकसे बर्तना चाहिये और वे ठीकसे वर्ताव यह हैं- "(१) उपसम्पदा देनी चाहिये ; ० २ (९४) यदि भिक्षुओ ! मानत्व-चरिक भिक्षुको चौथा बना परिवास दे, मानत्व-चारिक करे, मानत्वदे, या वीसवाँ वना आह्वान करे, तो वह अकर्म है, करणीय नहीं है।" 8 मानत्त्वचारिकके ( चौरानवे ) व्रत समाप्त ६५-अाह्वान पाये भिनुके कर्त्तव्य उस समय आह्वानार्ह भिक्षु अदंडित भिक्षुओंके अभिवादन ०३ स्नान करते वक्त पीठ मलना (इन कामोंको) लेते थे। ० । "भिक्षुओ ! आह्वानार्ह भिक्षुको ठीकसे बरतना चाहिये और वे ठीकसे वर्ताव यह हैं- "१–उपमंपदा न देनी चाहिये ; ०४ (९४) यदि भिक्षुओ ! आह्वानार्ह भिक्षुको चौथा वना परिवास दे, मानत्वाई करे, मानत्व दे या बीसवाँ (वना) आह्वान करे, तो वह अकर्म है, करणीय नहीं है ।” १ आह्वानाह के ( चौरानवे ) व्रत समाप्त पारिवासिक-प्रवन्धक समाप्त ॥२॥ m 10 ! १ देखो चुल्ल २९११ पृष्ठ ३६७ । देखो चुल्ल २(११ पृष्ठ ३६७-७० 'पारिवासिक'के स्थानपर "मानत्व"के परिवर्तनके साथ। ३ देखो चुल्ल २६१११ पृष्ठ ३६७ । ४ देखो चुल्ल २१।१ पृष्ठ ३६७-७० "पारिवासिक"के स्थानपर “आह्वानाई "के परिवर्तनके साथ ।