३४८ ] ४-चुल्लवग्ग [ १९२१९ (५) नियस्स दंड देने योग्य व्यक्ति १--"भिक्षुओ ! तीन बातोंसे युक्त भिक्षुको, चाहनेपर (=आक्ङखमान) संघ नियस्स कर्म करे-(१) अगळा, कलह, विवाद, वकवाद करनेवाला, संघमें अधिकरण करनेवाला होता है; ०१ 166 ६-"o--(१)अकेला बुद्धकी निंदा करता है; (२) अकेला धर्मकी निंदा करता है; (३) अकेला संघकी निंदा करता है।" 71 छः आकंखमान समाप्त (६) दंडित व्यक्तिके कर्तव्य "भिक्षुओ ! जिस भिक्षुका नि य स्स क र्म किया गया है, उसे ठीकसे बर्ताव करना चाहिये, और वह ठीकसे बर्ताव यह है-(१) उपसंपदा न देनी चाहिये; ०१ (१८) भिक्षुओंके साथ सम्प्रयोग ( मिश्रण) नहीं करना चाहिये ।" 72 अठारह नियस्स कर्मके व्रत समाप्त (७) दण्ड माफ़ करने लायक व्यक्ति तव संघने-'तुझे निस्सय लेकर रहना चाहिये--' (कह) से व्य स क भिक्षुका नि य स क र्म किया। वह संघके नि य स कर्म से दंडित हो अच्छे मित्रोंको मेवन करते, भजन करते, उपासन करते, (उनसे) कहलवाते, (अपने) पूछते हुए बहुश्रुत, आगमन, धर्म-धर, विनय-धर, मातृका-धर, पंडित, चतुर, मेधावी, लज्जागील, संकोची, मीखको चाहनेवाले हो गये । वह ठीकसे बर्ताव करते, रोवाँ गिराते थे, निस्तारके लायक (काम) करते थे । भिक्षुओंके पास जाकर ऐसा कहते थे- "आवुसो ! संघ द्वारा निम्सय कर्ममे दंडित हो मैं ठीकसे वर्तता हूँ, रोवाँ गिराता हूँ, निरतारके लायक (काम) करता हूँ। मुझे कैसा करना चाहिये ?" भगवान्से यह बात कही ।- "तो भिक्षुओ ! संघ से य्य स क भिक्षुके नि य स्स कर्मको माफ़ करे ।' 73 (मा फ़ न क र ने ला य क व्य क्ति)-(१-५) “भिक्षुओ! पाँच बातोंगे युक्त भिक्षुके नि य- म्स क म को नहीं माफ़ करना चाहिये-(?) उ प म म्प दा देता है; ०२ (१८) भिक्षुओंके माथ सम्प्रयोग करता है। 76 अठ्ठारह प्रतिप्रश्रब्ध न करने लायक समाप्त (८) दंड माफ करने लायक व्यक्ति (१-५) “भिक्षुओ! पाँच बातोंने यक्त भिक्षुके नियम्म कर्मको माफ़ करना चाहिये--(?) उप म म्प दा नहीं देता; (१८) भिक्षुओंके माथ सम्प्रयोग नहीं करता । 79 अठारह प्रतिप्रश्रब्ध करने लायक समाप्त (९) दगड माफ करनेको विधि "और भिक्षुओ ! इस प्रकार माफ़ी देनी चाहिये--बह नियम का भिक्ष गंधक पाग जा एक कंधेपर उनगमंगकर, बृद्ध भिक्षुओंके चरणोम वंदनाकर, उकन बेटमा बोले- " भन्ने ! में संघ द्वारा नि य म्म कर्म ने दंदिन हो टीका बनता हूँ नियम्म कर्मकी माली 0 ! २वी 'देखो इप्ट ३४८ । देखो पृष्ठ ३४५-४६ ।
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