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३४४ ] ४-चुल्लवग्ग [ १९१६ ११--"o---(१) स्मरण कराके०; (२) धर्मसे०; (३) समग्रसे०१०। 24 १२----"o--(१) आपत्तिका आरोप करके०; (२) धर्मसे० ; (३) समग्रसे ०१०।" 25 बारह धर्म कर्म समाप्त (५) तर्जनीय दंड देने योग्य व्यक्ति १–“भिक्षुओ ! तीन बातों से युक्त भिक्षुको, चाहनेपर (=आकंखमान ) संघ तर्जनीय कर्म करे-(१) अगळा, कलह, विवाद, वकवाद करनेवाला, संघमें अधि क र ण करनेवाला होता है; (२) वाल (=मूढ़), अचतुर, बरावर अपराध करनेवाला , अपदान (=आचार) रहित होता है; (३) प्रति- कूल गृहस्थ संसर्गोसे संयुक्त हो विहरता है। भिक्षुओ! इन दो बातों से युक्त भिक्षुके चाहनेपर संघ तर्जनीय कर्म करे। 26 २-"और भी भिक्षुओ ! तीन वातोंसे युक्त भिक्षुके चाहनेपर संघ तर्जनीय कर्म करे (१)शीलके विषयमें दुश्शील होता है; (२) आचारके विषयमें दुराचारी होता है; (३) दृष्टि (=धारणा) के विपयमें बुरी धारणावाला होता है ।०। 27 -(१) बुद्धकी निन्दा करता है; (२) धर्मकी निंदा करता है; (३) संघकी निदा करता है ।। 28 ४-"o-(१) अकेला सगळा, कलह, विवाद, वकवाद करनेवाला, मंघमें अधिकरण करनेवाला होता है; (२) अकेला, बाल, अचतुर, बगबर आपत्ति करनेवाला, अपदान रहित होता है; (३) अकेला प्रतिकूल गृहस्थ संसगास युक्त हो विहरता है ।०। 29 (१) अकेला गीलके विपयमें दुश्शील होता है; (२) अकेला आचार के विषयमें दुराचारी होता है ; (३) अकेला दृष्टि (=धारणा) के विषयमें बुरी धारणावाला होता है ।। 30 ६-"o-(१)अकेला बुद्धकी निदा करता है; (२) अकेला धर्मको निदा करता है; (३) अकेला संघकी निदा करता है ।।" 3 I छ आकंखमान समाप्त ३. 11 O- (६) दंडित व्यक्तिके कर्तव्य "भिक्षुओ ! जिस भिक्षुका तर्जनीय कर्म किया गया है, उसे ठीकन बरताव करना चाहिये, और वह ठीकसे बरताव यह है-(१) उपसम्पदा न देनी चाहिये; (२) निश्रय नहीं देना चाहिये ; (३) धामणेरसे उपस्थान (=मेदा ) नही कगनी चाहिये; (४) भिक्षुणियोंके आदेश देने की सम्मान नही लेनी चाहिये ; (५) ( संघकी ) मम्मति मिल जाने पर भी भिक्षुणियोंको उपदेय नहीं देना चाहिय; (६) जिस आ प ति (अपगध ) के लिये संघने तर्जनीय कर्म किया है. उग आनिको नही करना चाहिये; (७) या बैमी दूमरी (आपनि) को नहीं करना चाहिये ; (८) या उमर अधिक वर्ग (आपनि) नहीं करनी चाहिये; (२) कर्म (न्याय, फैमला ) की निदा नहीं करनी चाहिये । (१०) मिल (=फैसला करनेवालों ) की निंदा नहीं करनी चाहिये ; (??) प्र. ना त्म ( अदंटित ) शिक्षा उ पो म थ को स्थगित नही करना चाहिये; (१) (की ) प्र वा र पा स्थगिन नहीं करनी चाहिये; (१३) यात बोलने लायक ( काम ) नहीं करना चाहिये; (१८) अ न वा द ( - निन्दन ) नहीं प्रस्थापित करना चाहिये ; (१५) अवकाग नहीं करना चाहिये; (१६) प्रेरणा नहीं करनी चाहिये; (१७) स्मरण नहीं कगना चाहिये: (१८) निओके. माथ मत्प्रयोग ( मिश्रण ) नती करना चाहिये।" 32 ननीय कर्मके दन नमाप्त %3