० । तत्र ३३४ ] ३-महावग्ग [ १०१२।२ लिये चल दिये। क्रमशः चारिका करते जहाँ श्रावस्ती थी, वहाँ गये। वहाँ भगवान् श्रावस्ती में अ ना थ पिं डि क के आराम जेतवनमें विहार करते थे। तब को शा म्बी के उपासकोंने (विचारा)- "यह अय्या (=भिक्षु) को शा म्बी के भिक्षु, हमारे बळे अनर्थ करनेवाले हैं। इनसेही पीळित हो भगवान् चले गये । हाँ ! तो अब हम अय्या कोसम्बक भिक्षुओंको न अभिवादन करें, न प्रत्युत्थान करें, न हाथ जोळना=सामीची कर्म करें, न सत्कार करें, न गौरव करें, न मानें, न पूजें; आनेपर भी पिंड (=भिक्षा) न दें। इस प्रकार हम लोगों द्वारा अ-सकृत, अ-गुरुकृत, अ-मानित, अ-पूजित, असत्कार-वश चले जायेंगे, या गृहस्थ वन जायँगे, या भगवान्को जाकर प्रसन्न करेंगे।" तब कौशाम्बी-वासी उपासक कौशाम्बी-वासी भिक्षुओंको न अभिवादन करते कौशाम्बीवासी भिक्षुओंने कौशाम्बीके उपासकोंसे असत्कृत हो कहा- "अच्छा आवुसो ! हमलोग श्रा व स्ती में भगवान्के पास इस झगळे (=अधिकरण) को शान्त करें।" तब कौशाम्बी-वासी भिक्षु आसन समेटकर पात्र-चीवर ले, जहाँ श्रावस्ती थी, वहाँ गये। 5२-अधर्मवादी और धर्मवादी आयुष्मान् सा रि पुत्र ने सुना--"वह भंडन-कारक कलह-कारक-विवाद-कारक, भस्स (=भप)-कारक, संघमें अधिकरण (-झगळा ) कारक, कौशाम्बी-वासी भिक्षु श्रावस्ती आ रहे हैं।" तव आयुप्मान् सारिपुत्र जहाँ भगवान् थे, वहाँ गये । जाकर भगवान्को अभिवादनकर एक ओर बैठ गये । एक ओर बैठे हुए आयुष्मान् सारिपुत्रने भगवान्मे कहा-'भन्ते ! वह भंडन-कारक० कौशाम्बी-वासी भिक्षु श्रावस्ती आ रहे हैं, उन भिक्षुओंके साथ में कैगे बर्तृ ?" "सारिपुत्र ! तो तू धर्मके अनुसार वर्त्त ।" "भन्ते ! मैं धर्म (=नियमानुसार) या अधर्म कैसे जानूं ?" (१) अधर्मवादीकी पहिचान "सारिपुत्र ! अठारह बातों (वस्तु) से अ-धर्मवादी जानना चाहिये । 'मारि-पुत्र ! निशु (१) अ-धर्मको धर्म (-मूत्र) कहता है । (२) धर्मको अ-धर्म कहता है। (३) अ-विनयको विनय कहता है । (४) विनयको अ-विनय कहता है। (५) तथागत-दाग अ-भागित-अ-पितको, नगा- गत-द्वारा भापित-लपित कहता है। (६) भापित-लपिनको, ०अ-भागित अ-लपित करना है। (७) तथागत-द्वारा अन्-आचरितको आत्रन्ति कहता है । (८) तथागत-द्वारा आचरिततो अन्- आचरित कहता है। (९) तथागत-बाग अ-जप्त ( अ-विहित) को प्रजन कहता है। (१०) प्रसप्तको अ-प्रनप्न० । (११) अन्-आपनिको आपनि ( दोप) कहता है। (१०) आपति। अन्-आपनि कहता है । (१६) लघु (- छोटी)-आपनिको गुरु (= बळी)-आपनि कहना है । ( १८) गुरु-आपत्तिको लघु-आपनि कहता है। (१५) म-अवगेप (अपूर्ण) आपतिको अन्-अवयोग ( पुणे) आपत्ति कहता है । (१६) अन्-अवरोप आपनिको स-अबर्गर आपनि बहता है। (१) दुपार (=दुराचार) आपनिको अ-दु:योग्य आपनि कहता (दीपित प्रकाशित करता है)। (१८) दुःस्थौल्य आपत्ति को अ-दान्यान्य आपनि कहता है। 5 (२) धर्मवादोको पहिचान "अटान्ह बातृओन मारि-त्र-बार्द बनना चाहिये ।- 'मारित्र ! भिक्ष । १ । यो जाता है। (पको i ! (
को अ-विनय । () विनयी बिन्दमानअपट ! (8:: : -