१०६१।३ ] उत्क्षेपकोंको उपदेश [ ३२३ आपत्ति-सहित (कहते हैं)। 'उत्क्षेपण'-रहित (अनुत्क्षिप्त) हूँ, मुझे (उन्होंने) उत्क्षिप्त किया। अधामिक-को प्य, स्थानमें अनूचित निर्णय (कर्म) द्वारा उत्क्षिप्त किया गया हूँ। आयुष्मान् (लोग) धर्मके साथ विनयके साथ मेरा पक्ष ग्रहण करें।” (तव) सभी जानकार संभ्रान्त भिक्षुओंको पक्षमें उसने पाया । जा न प द (= दीहाती) जानकार और संभ्रान्त भिक्षुओंके पास भी दूत भेजा० । जनपद जानकार और संभ्रान्त भिक्षुओंको भी पक्षमें पाया। तब वह उत्क्षिप्त भिक्षुके पक्षवाले भिक्षु, जहाँ उत्क्षे प क थे, वहाँ गये । जाकर उत्क्षेपक भिक्षुओंसे वोले- "यह अनापत्ति है आवुसो ! आपत्ति नहीं। यह भिक्षु आपत्ति-रहित है, आपत्ति-सहित ( आ पन्न) नहीं । अनुत्क्षिप्त है . उत्क्षिप्त नहीं । यह अ-धार्मिक० कर्म (: न्याय) से उत्क्षिप्त किया गया है ।" ऐसा कहनेपर उत्क्षेपक भिक्षुओंने उत्क्षिप्त भिक्षुके पक्षवालोंसे कहा-"आदुसो ! यह आपत्ति है, अनापत्ति नहीं । यह भिक्षु आपन्न है, अनापन्न नहीं । यह भिक्षु उत्क्षिप्त है, अनुत्क्षिप्त नहीं। यह धार्मिक-अ को प्य-स्था नी य, कर्म (= न्याय) द्वारा उत्क्षिप्त हुआ है। आयुष्मानो ! आप लोग इस उत्क्षिप्त भिक्षुका अनु वर्त नः अनुगमन न करें।" उत्क्षिप्तके पक्षवाले भिक्षु, उत्क्षेपक भिक्षुओं द्वारा ऐसा कहे जानेपर भी; उत्क्षिप्त भिक्षुका वैसे ही अनुवर्तन अनुगमन करते रहे। (२) उत्तिप्तकोंको उपदेश तव भगवान्-'भिक्षु-संघमें फूट हो गई, भिक्षु-संघमें फूट हो गई'-(सोच) आसनसे उठ, जहाँ वह उत्क्षेपण करनेवाले भिक्षु थे, वहाँ गये । जाकर विछे आसनपर बैठे। बैठकर भगवान्ने उत्क्षेपण करनेवाले भिक्षुओंसे कहा- "मत तुम भिक्षुओ! ---'हम जानते हैं, हम जानते हैं'-(सोच) जैसा-तैसा होनेपर भी (किसी) भिक्षका उत्क्षेपण करना चाहो । यदि भिक्षुओ ! (किसी) भिक्षुने आपत्ति (अपराध) किया हो, और वह उस आपत्तिको अन्-आपत्ति (के तौरपर) देखता हो और दूसरे भिक्षु उस आपत्तिको आपत्ति (के तौरपर) देखते हों । यदि भिक्षुओ! वे भिक्षु उस भिक्षुके बारेमें ऐसा जानते हों-'यह आयुप्मान् वहु-श्रुत, आगमज्ञ, धर्म-धर, विनय-धर, मातृका-धर, पंडित ( व्यक्त), मेधावी, लज्जाशील, आस्थावान्, सीख (चाहने) वाले हैं ; यदि हम इन भिक्षुका आपत्ति न देखनेके लिये उत्क्षेपण करेंगे = 'इन भिक्षुके साथ हम उपोसथ न करेंगे, इन भिक्षुके बिना उपोसथ करेंगे ; तो इसके कारण संघमें झगळा, कलह, विग्रह, विवाद, संघमें फूट = संघराजी = संघ-व्यवस्थान मंघका बिलगाव होगा।' तो भिक्षुओ! फुटको वळा समझकर, भिक्षुओंको आपत्ति न देखनेके लिये उस भिक्षका उत्क्षेपण नहीं करना चाहिये । यदि भिक्षुओ! भिक्षुने आपत्ति की हो और वह उस आपतिको अन्-आपत्तिके तौरपर देखता हो ० यदि हम इन भिक्षुका आपत्तिके न देखनेके लिये उत्क्षेपण करेंगे = इन भिक्षुके साथ प्रवारणा न करेंगे, इन भिक्षुके विना प्रवारणा करेंगे ( ० ) इन भिक्षुओंके साथ संघ कर्म न करेंगे । इन भिक्षुके साथ आसनपर नहीं बैठेंगे ० । इन भिक्षुत्रोंके साथ चवागू पीने नहीं बैठेंगे। इन भिक्षुओंके साथ भोजन करने नहीं बैठेंगे०। इन भिक्षुओंके साथ एक छतके नीचे वान नहीं करेंगे । इन भिक्षुओंके साथ वृद्धत्वके अनुसार अभिवादन, प्रत्युत्थान, हाथ जोळना, नामीचिकर्म (=कुगल समाचार पूछना) नहीं करेंगे ०। तो इसके कारण झगळा ० होगा; तो भिक्षुओ! फूटको बळा समझकर भिक्षुओंको, आपत्ति न देखनेके लिये उस भिक्षुका उत्क्षेपण नहीं करना चाहिये ।" 1 (३) उत्क्षेपकोंको उपदेश तब भगवान् उत्क्षेपण करनेवाले भिक्षुओंको यह बात कह आसानसे उठ, जहाँ उत्क्षिप्त
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