९७३।२ ] धर्म कर्म जिसका कि मैं प्रतिकार करूँ। मुझे बुरी धारणा नहीं है जिसको कि मैं छोडूं ।' संघ न देखने, प्रतिकार न करने, न छोळनेके लिये उसका उत्क्षेपण करे (यह) धर्म - कर्म है।" 40 ३-कुछ अधर्म और धर्म-कर्म (१) अधर्म कर्म १-तब आयुष्मान् उ पा लि जहाँ भगवान् थे वहाँ गये । जाकर भगवान्को अभिवादन कर एक ओर बैठे । एक ओर बैठे आयुष्मान् उपालि ने भगवान्से यह कहा- "भन्ते ! समग्न संघके सामने करने लायक कर्मको जो बे-सामने करता है तो भन्ते ! क्या वह धर्म - कर्म है ? वि न य - कर्म है ?" "उ पा लि! वह अधर्म कर्म है, अ - वि न य कर्म है।" २----"भन्ते ! समग्न संघसे पूछकर करने लायक कर्मको जो बिना पूछे करे; प्रतिज्ञा करके करने लायक कर्मको बिना प्रतिज्ञाके करे; स्मृति-विनय देने लायकको अ मूढ़ वि न य दे; अमूढ़ विनयके लायकको त त्पा पी य सि क कर्म करे; त.त्पा पी य सि क कर्मके लायकका तर्ज नी य कर्म करे; तर्जनीय कर्म लायकका नि य स्स कर्म करे; नियस्स कर्म लायकका प्रब्राज नी य कर्म करे; प्रव्राजनीय कर्म लायकका प्रतिसारणीय कर्म करे; प्रतिसारणीय कर्म लायकका उत्क्षेपणीय कर्म करे; उत्क्षेपणीय कर्म लायकको परि वा स दे; परिवास देने लायकको मूलसे प्रतिकर्षण करे; मूलसे प्रतिकर्पण करने लायकको मा न त्व दे; मानत्व देने लायकका आह्वान करे; आह्वान लायकका उप स म्पा द न करे; भन्ते ! क्या यह धर्म - कर्म है। वि न य - कर्म है ?" "उपालि ! वह अधर्म कर्म है, अविनय कर्म है जो कि वह उ पा लि ! समग्र संघके सामने करने लायक कर्मको वेसामने करता है। उ पा लि! इस प्रकार अधर्म कर्म होता है, अ - वि न य - कर्म होता है, और इस प्रकार संघ सा ति सा र (=अतिकी धारणावाला) होता है। उ पा लि ! समग्र संघसे पूछकर करने लायक कर्मको जो विना पूछे करता है ० आह्वान् लायकका उपसम्पादन करता है । उपालि ! इस प्रकार अधर्म कर्म अ-विनय कर्म होता है; और इस प्रकार संघ सा ति सा र होता है।" (२) धर्म कर्म १-"भन्ते! समग्र संघके सामने करने लायक कर्मको जो सामने करता है, भन्ते ! क्या वह धर्म - कर्म है, विनय-कर्म है ?" "उ पा लि ! वह धर्म - कर्म है, वि न य - कर्म है।" २-"भन्ते ! समग्र संघसे पूछकर करने लायक कर्मको जो पूछकर करता है, प्रतिज्ञा करके करने लायक कर्मको प्रतिज्ञा करके करता है; स्मृति-विनयके लायकको स्मृति - वि न य देता है; अमु ढ़ - वि न य ०; त त्या पी य सि क - कर्म०; तर्जनी य - कर्म०; नि य स्स कर्म०; प्रा ज नीय कर्म०; प्रति सा र णी य कर्म०; उत्क्षेपणी य कर्म०; परि वा स ०; मूलसे प्रतिकर्पण०; मा न त्व०; आह्वान०; उपसम्पदाके लायकको उपसम्पादन करता है; भन्ते ! क्या यह धर्म - कर्म है, विनय - कम है ?" "उपालि ! वह धर्म - कर्म है, वि न य - कर्म है। उ पा लि ! समग्र संघके सामने करने लायक कर्मको जो सामने करता है इस प्रकार उ पा लि! धर्म - कर्म, वि न य - कर्म होता है और इस प्रकार नंघ अति ना र-रहित होता है । उपालि ! समग्र संघको पूछकर करने लायक कर्मको जो पूछकर करता है; प्रतिज्ञा करके करने लायक कर्मको०; स्मृति-विनय०; अमूढ़-विनय०; तत्पापीयसिक-कर्म०;
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