! २९२ ] ३-महावग्ग [ cfas परिवारको ठीक ठीक रोगी वात प्रगट करता है-~० ; (५) दुःवमय ० शारीरिक पीळाओंको महने- बाला होता है। भिक्षुओ ! इन पांन । (५) अयोग्य रोगी परिचारक "भिक्षओ ! पांच बातोंगे गात गेगी - पनि ना र क. रोगीकी पग्निर्या करने योग्य नहीं होता- (१) दवा नहीं ठीक कर सकता : (२) अन्तल-निकाल (वन्तु) को नहीं जानता, प्रतिकुलको देना है, अनुकूलको हटाता है: (3) गिनी लाभने मालगे गंगीकी सेवा करना है मैत्री-पूर्ण चिनसे नहीं; (४) मल-मूत्र, थूक और बमन हटाने में प्रणा करता है: (,) रोगीको समय समय पर धार्मिक क्या द्वारा समुत्तेजिन, सम्प्रहपित करने में समर्थ नहीं होता। भिक्षओ ! इन पांन ।" ५) योग्य रोगो परिचारक "भिक्षुओ! पनि बातोंने युगत रोगी - परिना र क रोगीकी परिचर्या करने योग्य होता है- (१) दवा ठीक करने में समर्थ होता है; (२) अनुकुल-प्रतिकूल (बन्नु) को जानता है-प्रतिकूलचो हटाता है, अनुकूलको देता है; (३) किमी लाभके गालने नहीं, मैत्री-पूर्ण चित्तने रोगीकी सेवा करना है; (४) मल-मूत्र, थूक और वमनके हटानेमें घृणा नहीं करता; (५) रोगीको समय समयपर पानि कथा द्वारा समुत्तेजित, सम्प्रहपित करनेमें समर्थ होता है । भिक्षुओ! इन पाँच ०।" (६) मरे भिक्षु या श्रामणेरकी चीजका मालिक संघ १--उस समय दो भिक्षु को स ल ज न प द में रास्तेने जा रहे थे। वह एक आवासमें गये। वहाँ एक बीमार भिक्षु था। तब उन भिक्षुओंको यह हुआ—'आवुन ! भगवान्ने रोगी-सेवाकी प्रशंसा की है। आओ आवुस ! हम इस रोगीकी सेवा करें।' उन्होंने उसकी सेवाकी। उनके सेवा करते, वह मर गया। तब उन भिक्षुओंने उस भिक्षुके पात्र-चीवरको लेकर श्रावस्ती जा भगवान्ले यह बात कही। "भिक्षुओ ! मरे भिक्षुके पात्र-चीवरका स्वामी संघ है: यदि रोगी- परि चा र क ने बहुत कान किया हो तो भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ संघको तीन चीवर और पात्रको रोगी - परिचा र क को देने की। 69 ! "और भिक्षुओ! इस प्रकार देना चाहिये; वह रोगी - परि चा र क भिक्षु संघके पास जाकर ऐसा कहे-'भन्ते ! अमुक नामवाला भिक्षु मर गया है। यह उसका त्रिचीवर और पात्र है।' फिर चतुः समर्थ भिक्षु संघको सूचित करे-'पूज्य संघ मेरी सुने। अमुक नामका भिक्षु मर गया। यह उसका जि चीवर और पात्र है। यदि संघ उचित समझे तो वह त्रिचीवर और पात्रको इस रोगी- प रि चा र क को दे। यह सूचना है ० । संघको यह पसंद है, इसलिये चुप है-ऐसा मैं इसे समझता हूँ ।" २. उस समय एक श्रामणेर मर गया। भगवान्से यह बात कही- "भिक्षुओ! श्रामणेरके मरनेपर उसके पात्र-चीवरका स्वामी संघ है; यदि रोगी-परिचारकने बहुत काम किया हो तो भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ संघको तीन चीवर और पात्रको रोगी-परिचारक- को देने की। 70 ०१ ऐसा मैं इसे समझता हूँ।" (७) मरेकी संपत्तिमें सेवा करनेवाले भिक्षु और श्रामणेरका भाग १-उस समय एक भिक्षु और एक श्रामणेरने एक रोगीकी सेवाकी । उनकी सेवा करतेमें यह १ ऊपरकी तरह यहाँ भी दुहराना चाहिये ।
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