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२७४ ] ३-महावग्ग [SER जोळेको स्वीकार करें, और भिक्षु-संघको गृहरयोंके दिये चीवर (=गृहपति-चीवर) की आज्ञा दें।" भगवान्ने शिविके दुशाले...को स्वीकार किया।...भिक्षुसंघको आमंत्रित किया- (२) नये वस्त्र चोवरका विधान "भिक्षुओ! गृहपति-नीवर (के उपयोगकी) अनुजा देता है। जो चाहे पांसुकूलिक रहे, जो चाहे गृहपति-चीवर धारण करे। (दोनोम) किसी भी में संतुष्टि कहता हूँ" I (३) प्रोढ़नेकी अनुमति १- रा ज ग ह के लोगोंने सुना कि भगवान्ने भिक्षुओंके लिये ग ह प ति (=गृहस्थोंके दिये नये) चीवरकी अनुमति दे दी है । तब वह लोग हर्षित उदग्र हुए.---'अब हम दान देंगे, पुण्य करेंगे; क्योंकि भगवान्ने भिक्षुओंके लिये गृ ह प ति चीवरकी अनुमति दे दी है ।' और एकही दिनमें राज- गृह में कई हज़ार चीवर मिल गये । देहातके (=जानपद) मनुष्योंने सुना कि भगवान्ने भिक्षुओंके लिये गृहपति चीवरकी अनुमति दे दी है। (और) देहातमें भी एकही दिनमें कई हजार त्रीवर मिल गये। २-~-उस समय संघको ओढ़ना (=प्रावार) मिला था। भगवान्से यह बात कही- "भिक्षुओ! अनुमति देता हूँ ओढ़नेकी ।" 2 कौशेय (=कीड़ेसे पैदा सभी प्रकारके वस्त्र) का प्रा वा र मिला था।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ की शे य-प्रा वा र की।" 3 को ज व (=लम्बे वालोंवाला कम्बल) मिला था।- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ को ज व की।" प्रथम भाणवार समाप्त ॥१॥ 4 (४) कम्बलकी अनुमति उस समय का शि राज' ने जी व क कौमार-भृत्यके पास पाँचसोका क्षौ म (=अलसीकी छालका बना हुआ कपळा)-मिश्रित कम्बल भेजा था। तब जी व क कौमार-भृत्य उस पाँचसोका कम्बल लेकर जहाँ भगवान् थे, वहाँ गया। जाकर भगवान्को अभिवादनकर एक ओर बैठा। एक ओर बैं जी व क कौ मा र भृ त्य ने भगवान्से यह कहा- "भन्ते ! मुझे का शि रा ज ने यह पाँचसोका क्षौ म मिश्रित कम्बल भेजा है। भन्ते ! भग- वान् इस मेरे कम्वलको ग्रहण करें, स्वीकार करें; जिसमें कि यह चिरकाल तक मेरे हित और सुखके लिये हो।" भगवान्ने कम्वलको स्वीकार किया। तव भगवान्ने जी व क कौमार-भृत्यको धार्मिक कथा द्वारा समुत्तेजित, सम्प्रहर्पित किया। तव जी व क कौ मा र-भृत्य भगवान्को धार्मिक कथाद्वारा... समुत्तेजित सम्प्रहर्पित हो, आसनसे उठ भगवान्को अभिवादनकर प्रदक्षिणाकर चला गया । तब भगवान्ने इसी संबंधमें इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ कम्बलकी।" (५) छ प्रकारके चीवरका विधान उस समय संघको नाना प्रकारके चीवर ( वस्त्र) मिले । तव भिक्षुओंको यह हुआ–'भगवान् 5 १ कोसलराज प्रसे न जि त् का सगा भाई (-अट्ठकथा)।