८६११ ] जीवक-चरित [ २६९ "नहीं, भणे जीवक; (यह) तेरा ही रहे। हमारे ही अन्तःपुर (-हवेलीकी सीमा)में मकान वनवा ।" "अच्छा देव !" '...कह...जीवक...ने अभय-राजकुमारके अन्तःपुरमें मकान बनवाया।" उस समय राजा मागध श्रेणिक विं वि सा र को भगंदरका रोग था। धोतियाँ (साटक) खूनसे सन जाती थीं। देवियाँ देखकर परिहास करती थीं-'इस समय देव ऋतुमती हैं, देवको फूल उत्पन्न हुआ है, जल्दी ही देव प्रसव करेंगे।' इससे राजा मूक होता था। तव राजा.. विविसारने अभय- राजकुमारसे कहा- "भणे अभय ! मुझे ऐसा रोग है, जिससे धोतियाँ खूनसे सन जाती हैं । देवियाँ देखकर परिहास करती हैं । तो भणे अभय ! ऐसे वैद्यको ढूँढो, जो मेरी चिकित्सा करे।" "देव ! यह हमारा तरुण वैद्य जी व क अच्छा है, वह देवकी चिकित्सा करेगा।" "तो भणे अभय ! जीवक वैद्यको आना दो, वह मेरी चिकित्सा करे।" तव अभय-राजकुमारने जीवकको हुकुम दिया- "भणे जीवक! जा राजाकी चिकित्सा कर।" "अच्छा देव !" कह. . .जीवक कौमार-भृत्य नखमें दवा ले जहाँ राजा विविसार था, वहाँ गया। जाकर राजा...विविसारसे बोला- "देव! रोगको देखें।" तव जीबकने राजा....विविसारके भगंदर रोगको एक ही लेपसे निकाल दिया। तब राजा... बिंबिसारने निरोग हो, पाँच सौ स्त्रियोंको सव अलंकारोंसे अलंकृत भूपितकर, (फिर उस आभूपण- को) छोळवा पुंज बनवा, जीवक.. को कहा- "भणे ! जीवक ! यह पाँच सौ स्त्रियोंका आभूपण तुम्हारा है।" "यही बस है कि देव मेरे उपकारको स्मरण करें।" "तो भणे जीवक ! मेरा उपस्थान (सेवा चिकित्सा द्वारा) करो, रनवास और बुद्ध-प्रमुख भिक्षु-संघका भी (उपस्थान करो) ।" "अच्छा, देव !" (वह) जीवकने...राजा...विविसारको उत्तर दिया। उस समय रा ज गृह के श्रेष्ठीको सात वर्षका शिर दर्द था। वहुतसे वळे वळे दिगन्त-विख्यात (=दिसा-पामोक्ख) वैद्य आकर निरोग न कर सके, (और) वहुत सा हिरण्य (अशर्फी) लेकर चले गये। वंद्योंने उसे (दवा करनेसे) जवाब दे दिया था। किन्हीं वैद्यों ने कहा-पाँचवें दिन श्रेष्ठी गृहपति मरेगा । किन्हीं वैद्योंने कहा-सातवें दिन० । नब राजगृहके नैगमको यह हुआ-'यह श्रेष्ठी गृहपति राजाका और नैगमका भी बहुत काम करनेवाला है, लेकिन वैद्योंने इसे जवाब देदिया है। यह राजाका तरण वैद्य जीवक अच्छा है । क्यों न हम श्रेष्ठी गृहपतिकी चिकित्साके लिये राजासे जीवक वैद्यको मांगे। तब राजगृहके नंगमने राजा. . .विविनारके पान.. जा...कहा- "देव ! यह श्रेष्ठी गृहपति देवका भी, नैगमका भी, बहुत काम करने वाला है। लेकिन वैद्योंने उदार दे दिया है. ० । अन्टा हो, देव जीवक वैद्यको श्रेष्ठी गृहपतिकी चिकिन्नाके लिये आना दें।" दद मजा...विनतारने जीदक कौमार-नृत्यको आना दी- "जाओ, भ जीवकः । श्रेष्टी गृहपतिकी त्रिकिल्ला करो।" "मा दंड !" मह, जीवन...श्रेष्टी गृहपति विकारको पहिचानकर, श्रेष्ठी गृहानिने
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