७-कठिन स्कंधक १--कठिन चीवरके नियम । २--कठिन चीवरका उद्दार । ३---कठिन चीवरके अ-विन्न । ६१-कठिन चीवरके नियम -श्रावस्ती (१) कठिन चोवरका विधान १-उस समय भगवान् बुद्ध था व स्ती में अनापिंडिकके आराम जेतवनमें विहार करते थे। उस समय पाठे य्य क (पाठा' के रहनेवाले) तीस भिक्षु जो सभी अरण्यवासी, भिक्षान्नभोजी, फेंकै चीथळोंके पहननेवाले, तीनही चीवर धारण करनेवाले थे, भगवान्के दर्शनके लिये श्रावस्ती जाते वक्त वर्षो प ना यि का ( =असाढ़-पूर्णिमा )के नज़दीक होनेसे वोपनायिकाको श्रावस्ती न पहुंच सके, और उन्होंने मार्ग में सा के त (= अयोध्या) में वर्षावास किया; और (श्रावस्ती जाने) की उत्कंठा के साथ वर्षावास किया-भगवान् यहाँसे पासहीमें छ योजनपर बिहार करते हैं और हमें भगवान्का दर्शन नहीं होरहा है ।' तब वह भिक्षु तीनमास वाद वर्षावास समाप्तकर प्र वा र णा के होचुकनेपर वर्षा वरसते पानीके जमाव और पानीके कीचळ होते समय ही भीगे चीवरोंसे जहाँ श्रावस्तीमें अनाथ - पिं डि क का आराम जेतवन था और जहाँ भगवान् थे वहाँ पहुँचे । पहुँचकर भगवान्को अभिवादनकर एक ओर बैठे। बुद्ध भगवानोंका यह आचार है कि नवागन्तुक भिक्षुओंके साथ कुशल समाचार पूर्छ । तब भगवान्ने भिक्षुओंसे यह कहा- "भिक्षुओ ! अच्छा तो रहा ? यापन करने योग्य तो रहा ? एक मत हो प्रेमके साथ विवाद- रहितहो अच्छी तरह वर्षावास तो किया ? भोजनका कष्ट तो नहीं हुआ "भन्ते ! हम पाठे य्य क (पाठाके रहने वाले) तीस भिक्षु० भीगे चीवरोंसे रास्ता आये।" तब भगवान्ने इसी संबंधमें, इसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ वर्षावास कर चुके भिक्षुओंको कठिन २ पहिनने की।" I (२) कठिनवाले भिक्षुके लिये विधान "कठिनके पहिन चुकनेपर भिक्षुओ ! तुम्हें पाँच वातें विहित होंगी-(१) विना आमंत्रणके १ कोसल देशके पश्चिम ओर एक राष्ट था (--अट्ठकथा)। वर्षावासको समाप्तिपर सारे संघको सम्मतिसे सम्मान प्रदर्शनके लिये किसी भिक्षुको जो चीवर दिया जाता है, उसे "कठिन" चीवर कहते हैं। [ ७ २५६ ]
पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/३०९
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।