२५२ ] ३-महावग्ग [ Gora एक ओर बैठ गया। एक ओर बैठे केणिय जटिलके दानका भगवान्ने इन गाथाओंद्वारा (भोजन- दानका) अनुमोदन किया- "यनों में मुख है अग्निहोत्र, छन्दोंमें मुग्य (=मुन्य) है मा वि त्री। मनुष्योंमें मुख है राजा, नदियोंमें मुख है सागर ।। नक्षत्रोंमें मुख है ताग, तपन करनेवालोंमें मुन्व है सूर्य । पुण्य चाहनेवाले यज्ञकर्ताओंके लिये गंध मुख है ।।' तब भगवान् केणिय जटिलके दानका इन गाथाओं द्वारा अनुमोदनकर, आमनसे उठकर चले गये। तव आपण । १२-कुसीनारा (७) रोजमल्लका सत्कार इच्छानुसार विहारकर भगवान् साढ़े बारह सौ भिक्षुओंके भिक्षु-संय-सहित जहाँ कु सी ना रा थी। उधर चारिकाके लिये चल दिये । कुसीनाराके मल्लोंने सुना-साड़े बारह मौ भिक्षुओंके महासंघके साथ भगवान् कुसीनारा आ रहे हैं। उन्होंने नियम किया-'जो भगवान्की अग- वानीको नहीं जाये, उसको पाँच सौ दंड।' उस समय रोज नामक मल्ल आयुष्मान् आनन्दका मित्र था। भगवान् क्रमशः चारिका करते जहाँ कुसीनारा थी, वहाँ पहुँचे । ...कुसीनाराके मल्लोंने भगवान् की अगवानी की। रोजमल्ल भी भगवान्की अगवानीकर, जहाँ आयुप्मान् आनन्द थे, वहाँ गया। जाकर आयुष्मान् आनन्दको अभिवादनकर एक ओर खळा हो गया,। एक ओर खळे हुए रोजमल्लले आयुष्मान् आनन्दने कहा- "आवुस रोज ! यह तेरा (कृत्य) वहुत सुन्दर (=उदार) है, जो तूने भगवान्की अग- वानी की।" “भन्ते ! आनन्द ! मैंने बुद्ध, धर्म, संघका सन्मान नहीं किया; बल्कि भन्ते ! आनन्द ! जातिके दण्डके भयसे ही मैंने भगवान्को अगवानी की।" तब आयुष्मान् आनन्द अ-सन्तुष्ट हुए-"कैसे रोजमल्ल ऐसा कहता है ?" आयुष्मान् आनन्द जहाँ भगवान् थे वहाँ गये। भगवान्को अभिवादनकर, एक ओर बैठ गये। एक ओर बैठे हुए, आयुष्मान आनन्दने भगवान्से कहा- "भन्ते ! रोजमल्ल विभव-सम्पन्न अभिज्ञात प्रसिद्ध मनुष्य है। इस प्रकारके ज्ञात मनुष्यों की इस धर्ममें श्रद्धा होनी अच्छी है। अच्छा हो, भन्ते ! भगवान् वैसा करें, जिसमें रोजमल्ल इस (बुद्ध) धर्ममें प्रसन्न होवे।" तब भगवान् रोजमल्लके प्रति मित्रता-पूर्ण (=मैत्र) चित्त उत्पन्न कर आसनसे उठ विहारमें प्रविष्ट हुए। रोजमल्ल भगवान्के मैत्र-चित्तके स्पर्शसे, छोटे वछळेवाली गायकी भाँति, एक विहारसे दूसरे विहार, एक परिवेणसे दूसरे परिवेणमें जाकर भिक्षुओंमे पूछता था- "भन्ते ! इस वक्त वह भगवान् अर्हत् सम्यक्-संबुद्ध कहाँ विहार कर रहे हैं। हम उन भगवान् अर्हत् सम्यक् सम्बुद्धका दर्शन करना चाहते हैं ?" "आवुस, रोज ! यह वन्द दर्वाजेवाला विहार है। निःशब्द हो धीरे धीरे वहां जाकर आलिन्द ( ड्योढ़ी) में प्रवेशकर खाँसकर जंजीरको खटखटाओ, भगवान् तुम्हारे लिये द्वार खोल देंगे।" १कसया (जि. गोरखपुर)।
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