साथ, 1 २४८ ] ३-महावग्ग [ SG917 "गृहपति ! तेरे पुत्रका बल देख लिया । (अब) तेरी पतोहूके दिव्यवलको देखना चाहता हूँ।" तव मेंडक गृहपतिने पतोहूको आजा दी।- "तो तू (इस) चतुरंगिनी सेनाको छ मासका भोजन (=रसद) दे।" तव मेंडक गृहपतिकी पतोहूने एक ही चार द्रोणके टोकरेको लेकर चतुरंगिनी सेनाको छ मासका भोजन दे दिया और जव तक न उठी तब तक वह खतम न हुआ। "गृहपति तेरी पतोहूका दिव्यबल देख लिया। अब तेरे दासके दिव्यबलको देखना चाहता हूँ।" "स्वामिन् ! मेरे दासके दिव्यवलको खेतमें देखना चाहिये।" "गृहपति रहने दे ! देख लिया तेरे दासके दिव्यबलको भी।" -(कह) चतुरंगिनी सेनाके साथ फिर राजगृहको लौट गया और जहाँ मगधराज मेनिय विम्बिसार था वहाँ पहुँचा। पहुँचकर मगध- राज सेनिय विम्बिसारसे सारी वात कह दी। १०-भदिया (३) पाँच गो-रसांका विधान तव भगवान् शा ली में इच्छानुसार विहारकर साढ़े बारहतौ भिक्षुओंके महाभिक्षुसंके जिधर भ द्दि या' थी, उधर चारिकाके लिये चल दिये। क्रमशः चारिका करते जहाँ भदिया थी, वहाँ पहुँचे। वहाँ भगवान् भद्दिया (=भद्रिका ) में जा ति या (=जातिका)-ब न में विहार करते थे। में ड क गृहपतिने सुना कि-'शाक्य-कुलसे प्रबजित शाक्य-पुत्र श्रमण गौतम भट्टियामें आए हैं, ..जातिया वनमें विहार करते हैं। उन भगवान् गौतमका ऐसा कल्याण ( - मंगल) कीति-शब्द फैला हुआ है-'वह भगवान् अर्हत्, सम्यक्-संबुद्ध, विद्याः आचरण-संयुक्त, सुगत, लोक-विद्, अनुत्तर (- सर्वश्रेष्ठ) पुरुपोंके दम्य-सारथी (-चावुक-सवार), देव-मनुप्योंके उपदेशक (=शास्ता), बुद्ध भगवान् हैं। वह देव-मार-ब्रह्मा सहित इस लोकको; श्रमण ब्राह्मणों सहित, देव-मनुष्यों सहित-(इस) प्रजा (जनता) को, स्वयं (परम-तत्त्वको) जानकर साक्षात्कार कर जतलाते हैं। वह आदि-कल्याण, मध्य- कल्याण, अवसान (अन्तमें)-कल्याण, अर्थ-सहित-व्यंजनसहित, धर्मको उपदेशते हैं; और केवल, परिपूर्ण, परिशुद्ध, ब्रह्मचर्यका प्रकाश करते हैं। इस प्रकारके अर्हतोंका दर्शन उत्तम होता है।' तव मेंडक गृहपति भद्र' (= उत्तम) भद्र यानोंको जुळवाकर, भद्र यानपर आरूढ़ हो, भद्र भद्र यानोंके साथ, भगवान्के दर्शनके लिये भद्रिका (=भद्दिया) से निकला । वहुतसे तीथिकों (=पंथाइयों)ने दूरसे ही मेंडक-गृहपतिको आते हुए देखा । देखकर मेंडक-गृहपतिसे कहा- "गृहपति! तू कहाँ जाता है ? "भन्ते ! मैं श्रमण गौतमके दर्शनके लिये जाता हूँ।" "क्यों गृहपति ! तू क्रियावादी होकर अ-क्रियावादी श्रमण गौतमके दर्शनको जाता है ? गृह- पति ! श्रमण गौतम अ-क्रियावादी है, अ-क्रियाके लिये धर्म-शिष्योंको उपदेश करता है, उसी (रास्ते) से श्रावकों को भी ले जाता है।" तव मेंडक गृहपतिको हुआ- "निःसंशय वह भगवान् अर्हत् सम्यक्-संबुद्ध होंगे, जिसलिये कि यह तीथिक निंदा करते हैं।" (और) जितना रास्ता यानका था, उतना यानसे जाकर (फिर) यानसे उतर, पैदल ही जहाँ भगवान् थे, वहाँ गया । जाकर भगवान्को अभिवादनकर, एक ओर बैठ गया। एक ओर बैठे मेंडक 11 १ मुंगेर (बिहार)।
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