६६४।१] सुप्रियाका अपना मांस देना [ २३१ ४-अभक्ष्य मांस ५-वाराणसी (१) सुप्रियाका अपना मांस देना तब भगवान रा ज गृह में इच्छानुसार विहारकर जिधर वा रा ण सी है उधर चारिकाके लिये चले । क्रमशः बारिका करते जहाँ वाराणनी है वहाँ पहुँचे। वहाँ भगवान् वाराणसीके ऋ पि प त न मृग दा व में विहार करते थे। उस समय वाराणसी में सुप्रिय (नामक) उपासक और सुप्रिया (नामक) उपालिका, दोनों थे। वह दाता काम करनेवाले और संघके सेवक थे। तब सुप्रिया उपासिका एक दिन आगममें जा एक विहार (=भिक्षुओंके रहनेकी कोठरी) से दूसरे विहार, एक परि वे ण ' से दूसरे परिवणमें जा भिक्षुओंने पूछती थी- "भन्त ! कौन रोगी है ? किसके लिये क्या लाना चाहिये ?" उस नमय एक भिक्षुने जुलाब लिया था। तब उस भिक्षुने सुप्रिया उयासिकासे यह कहा- "भगिनी ! मैंने जुलाब लिया है। मुझे प्रतिच्छानीय (=पथ्य) की आवश्यकता है।" "अच्छा आर्य! लाया जायेगा।" -(कह) घर जा नौकरको आज्ञा दी-- "जा भणे ! नैयार मांय योजना।" "अच्छा आयें ! "-- (कह) उन पुरुपने सुप्रिया ज्यामिकाको उत्तर दे सारी वा रा ण सी को खोज बालपन भी नैया मांग नदया । तब वह जहाँ सुप्रिया उपानिया थी वहां गया। जाकर सुप्रिया उपासिकाग यह बोला-- "आयें ! तयार मांस नहीं है । आज माग नही गया।" नब सुप्रिया उपायिकायो यह हुआ--'उन गेगी भिक्षुको प्रतिच्छा द नी व न मिलनेगे रोग बढ़ेगा, या गीत होगी। मेरे लिये यह उचित नहीं कि बरन देकर न पहुँचवाऊँ।'-(यह सोच) पोत्थ- निका (गाय काटनेका थियार) ले जायव मानको काटकर (वह यह ) दानाको दे दिया- न! जं! इस गांगको तैयारकर अमुक विहारमे गोगी भिक्षु है उनको दे आ। यदि मेरे बारेमें पूछे तो नहाना बीमा।' और चादने जांधको बांधकर कोनमें जा चारपाईपर लेट गई। तब म प्रिय पान धान का दानीने पुला-"सुप्रिया कहां है ? "आर्य ! ना कोठी लेटी ही है।" निरभिमानन जहां प्रिना स्पानिया थी वहां गया। जाकर मप्रिया उमानिकाने बह ..
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