- ५७१।११ ] निपिद्ध पादुकायें [ २०७ -वाराणसी (११) निषिद्ध पादुकायें १-तब भगवान् रा ज गृह में इच्छानुसार विहारकर जहाँ वा रा ण सी है उधर विचरनेको चल दिये। क्रमशः विचरते जहाँ वाराणसी है वहाँ पहुँचे और वहाँ वाराणसीमें भगवान् ऋपि प त न मृ ग दा व में विहार करते थे। उस समय पड्वर्गीय भिक्षु-भगवान्ने काटकी खळाऊँका निषेध किया है सोच, ताळके पौधोंको कटवा तालके पत्तोंकी पादुका (बनवा) धारण करते थे। (पत्तेके) काटनेसे वह तालके पौधे सूख जाते थे। लोग हैरान.. होते थे-कैसे शाक्य-पुत्रीय श्रमण तालके पौधेको कटवा कर तालके पत्तेकी पादुका धारण करते हैं, और कटे हुए वह तालके पौधे सूख जाते हैं ! शाक्यपुत्रीय श्रमण एकेन्द्रिय जीव (वृक्ष) की हिंसा करते हैं।' भिक्षुओंने उन मनुष्योंके हैरान.. होनेको सुना। उन भिक्षुओंने भगवान्से यह बात कही।- “सचमुच भिक्षुओ! षड्वर्गीय भिक्षु ० तालके पौधे सूख जाते हैं ?" "(हाँ) सचमुच भगवान ! बुद्ध भगवान्ने फटकारा -"भिक्षुओ ! कैसे वह मोघ पुरुप ० तालके पौधे सूखते हैं ? भिक्षुओ ! (कितने ही) मनुष्य वृक्षोंमें जीवका ख्याल रखते हैं। भिक्षुओ ! न यह अप्रसन्नोंको प्रसन्न करनेके लिये है।" फटकारकर भगवान्ने धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया- "भिक्षुओ! तालके पत्रकी पादुका नहीं धारण करनी चाहिये । जो धारण करे उसे दुक्कटका दोप हो।" 12 २--उस समय षड्वर्गीय भिक्षु भगवान्ने तालके पत्रकी पादुकाका निषेध किया है- यह सोच बाँसवे पौधोंको कटवाकर बाँसके पौधोंकी पादुका धारण करते थे। कटजानेसे वे वेतके पौधे मूब जाते थे। लोग हैरान.. होते थे--० एकेन्द्रिय जीवकी हिंसा करते हैं।' भिक्षुओंने ० सुना। तब उन भिक्षुओंने यह बात भगवान्ले कही ० ।- "भिक्षुओ ! बाँसके पौधोंकी पादुका नही धारण करनी चाहिये । जो धारण करे उसे दुक्क ट का दोप हो ।" 13 --तब भगवान् वा रा ण सी में इच्छानुसार विहार कर जिधर भ हि या' (=भद्रिका) है उधर विचन्नेके लिये चल दिये । त्रमशः विचरते, जहाँ भ दिया है, वहाँ पहुँचे । भगवान् वहाँ भ द्दि या में के. जाति या वनमें विहार करते थे। उस समय भद्दियावाले भिक्षु अनेक प्रकारकी पादुकाके मंडनमें लगे रहते थे--तृण-पादुका भी वनाते दनवाते थे, जकी पादुका भी बनाते बनवाते थे, व ल्व ज (-बमल, घान) की पादुका०, हितालकी पादुका ०, कमल-पादुका०, कम्बल-पादुका०, भी वनाते बनवाते 4: और शील, चित्त तथा प्रज्ञावे विपदमें पाठ और पूंछताछ करना छोळे थे । (इससे) जो वह अल्पना भिक्ष थे वह हैरान... होते थे ० । तद उन भिक्षुओंने भगवान्ने यह बात कही। "सचमुच भिक्षुओ ! महिपाके भिक्ष अनेक प्रकारके पादुकाके मंडनमें लगे रहते हैं ?" "(हां ) समुच भगवान् । भगवन्ने पटवारा- "निभुशो! कने मोघ पुरुष • ? निक्षुओ ! न यह अप्रमन्नोंको कर लिया 'सम्भवतः वर्तमान मुंगेर (बिहार) ।
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