४१५।१ ] प्रवारणाकी तिथि आगे बढ़ाना [ १९७ जब तक कि नीरोग हो जाओ । नीरोग हो चुकनेपर इच्छा हो तो दोषारोपण करना।' ऐसा कहनेपर भी यदि वह ( दोप-)आरोप करे तो उसे अनादर-संबंधी पाचित्तिय है ।" 857 (८) प्रवारणा स्थगित करनेके अनधिकारी १-- "यदि भिक्षुओ ! उन भिक्षुओंके प्रवारणा करते समय एक नीरोग ( भिक्षु ) दूसरे रोगी भिक्षुकी प्रवारणाको स्थगित करे तो उससे कहना चाहिये—'आवुस ! यह भिक्षु रोगी है । रोगीको भगवान्ने आरोप न लगाने योग्य कहा है । आवस ! प्रतीक्षा करो जब तक कि यह नीरोग हो जाय । नीरोग हो जानेपर यदि इच्छा हो तो दोप लगाना ।' ऐसा कहनेपर भी यदि वह आरोप करे तो उसे अनादर-संबंधी पा चि त्ति य है । 858 २~-यदि भिक्षुओ ! उन भिक्षुओंके प्रवारणा करते समय एक रोगी (भिक्षु ) दूसरे रोगी ( भिक्षु )की प्रवारणाको स्थगित करे, तो उन्हें ऐसा कहना चाहिये-(आप दोनों) आयुष्मान् रोगी हैं । रोगीको भगवान्ने आरोपण करनेके अयोग्य कहा है । आवुसो ! प्रतीक्षा करो जब तक कि तुम दोनों नीरोग हो जाओ । नीरोग हो जानेपर यदि इच्छा हो तो दूसरे नीरोग ( भिक्षु )पर आरोप करना । ऐसा कहनेपर भी यदि वह आरोप करे तो उसे अनादर-संबंधी पा चि ति य है । 859
- -"यदि भिक्षुओ ! उन भिक्षुओंके प्रवारणा करते समय एक ( भिक्षु ) दूसरे (भिक्ष) की
प्रवारणाको स्थगित करे, तो संघको दोनोंने जिरह करके, बात करके, पता लगा करके, धर्मानुसार (दंड) करवा संघको प्रबारणा करनी चाहिये ।" 860 ! १५-प्रारणाकी तिथिको आगे बढ़ाना (१) ध्यान आदिको अनुकूलताके लिये उस समय कोसल देशके एव आवासमें बहुतसे प्रसिद्ध संभ्रान्त भिक्षु वर्षावास कर रहे थे । उनके एवमत, विवाद-रहित हो मोदयुक्त ( वहाँ ) रहते एक अच्छा वि हा र (-ध्यान समाधि आदि) प्राप्त हुआ। तब उन भिक्षुओंको यह हुआ-'हमें एकमत विवाद-रहित हो मोदयुक्त रहने में वः अच्छा विहार प्राप्त हुआ है । यदि हम इसी वक्त प्रवारणा करेंगे तो हो सकता है कि प्रवारणा कवे भिक्षु विचरने के लिये चले जायें और इस प्रकार हम इस उत्तम वि हा र से बाहर हो जायेंगे ; हमें बने कन्ना चाहिये?' भगवान्से यह बात कही। "यदि भिक्षुओ ! किती आदासमें बहुतने प्रसिद्ध संभ्रान्त भिक्षु० इस प्रकार हम इस उत्तम बिहान्ने बाहर हो जायेंगे, तो भिक्षुओ ! अनुमति देता है प्रबारणाके मंग्रह करने की। 861 और भिक्षुओ ! इन प्रकार (मंग्रह) करना चाहिये-मबको एक जगह एकत्रित होना साहि । एकत्रित होने के बाद चतुर नमर्थ भिक्षु संघको भूचित करे- क. शनि-जले ! नंघ मेरी मुने, हमें एकमत विवाद-रहित हो मोदयुक्त रहने में एक अच्छा विकार प्राप्त हुआ है। यदि हम बाहर हो जायेंगे । यदि संघ उदिन ममझे तो प्रवारणाका मंग्रह ( शंकरना) को मदन मोमध करे, प्रानिमोक्ष-पाट करे और चातुर्मामी कौमुदी-पूर्णिमा मोरणा दगा-हना है । .. अप्रा---- { भन्ने नंगे मुने, हमें एकमत विवाद-रहित हो मोद-युक्त रहने नानाला है ।दि हम और आगामी चातुर्मानी कौमुदी पूर्णिमाको प्रदाणा i अपनी दामाद किया जाय और इन ममय सोनय किया