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३४१३ ) कब आना-जाना और कब नहीं [ १८३ पर उसी दिन चला जाये । भिक्षुओ ! उस भिक्षुको पहली वो प ना यि का न मालूम हो, तो भी तुरंत उसको दुक्कटका दोष हो । 193 ख. "यदि भिक्षुओ ! किसी भिक्षुने पहिली वर्पोपनायिकासे वर्षावास करनेका वचन दिया हो और उस आवासमें जाते वक्त वह बाहर उपोसथ करे, पीछे बिहारमें जाये, आसन-वासन बिछाये, धोने-पीनेका पानी रखे, आँगनमें झाळूदे, और करने लायक कामके बाकी रहतेही उसी दिन चला जाये; भिक्षुओ ! उस भिक्षुको पहिली वर्षापनायिका न मालूम हो, तो भी तुरन्त उसको दुवकटका दोप हो । 194 ग. "आँगनमें झालूदे और करने लायक कामके बाकी न रहनेपर दो-तीन दिन विता कर चला जाय; भिक्षुओ ! उस भिक्षुको० दुक्क ट का दोप हो । 195 घ. “आँगनमें झाळू दे और करने लायक कामके वाकी रहते ही दो-तीन दिन बिताकर चला जाये; भिक्षुओ ! उस भिक्षुको० दुक्कटका दोष हो । 196 ङ. "० आँगनमें झाळू दे और सप्ताहभरके करने लायक कामके रहते दो-तीन दिन विताकर चला जाय, और वह उस सप्ताहको बाहर बितावे; भिक्षुओ ! उस भिक्षुको० दुक्कटका दोष हो।" 197 जाळू (३) कब आना-जाना और कब नहीं -(दोष नहीं) -क. "० आँगनमें झाळू दे और सप्ताह भरके करने लायक कामके रहते दो-तीन दिन विताकर चला जाय, और वह उस सप्ताहके भीतरही लौट आये; भिक्षुओ ! उस भिक्षुको दोष नहीं । 198 व. "० आँगनमें झाळू दे और वह प्र वा र णा के १ आनेके एक सप्ताह पहले करने लायक कामको वाकी रखकर चला जाता है तो भिक्षुओ ! वह भिक्षु चाहे उस आवासमें आये या न आये, उस भिक्षुको० दोष नहीं। 199 ३- (दोष) ८. "० आँगनमें झाळू दे और वह करने लायक काम वाकी न रखकर उसी दिन चला जाता ह । भिक्षुओ ! उस भिक्षुको० दुक्क ट हो । 200 ख. "० आँगनमें दे और वह करने लायक कामको वाकी रखकर उसी दिन चला जाता है। दुव क ट हो । 201 ग. "• आँगनमें झाळूदे और करने लायक कामको न छोळ दो-तीन दिन रहकर चला जाता है घ. "० आँगनमें झाळू दे और करने लायक कामको बाकी रख दो-तीन दिन रहकर चला 01 203 रु. १२. “आँगनमें साळू दे और सप्ताह भरके लायक कामको छोळ दो-तीन दिन रहकर चला जाता है और वह सप्ताह भर बाहर बिताता है, उस भिक्षुको० दुक्कट हो । 204 च. " आँगनमें झाळू दे और वह दो-तीन दिन बसकर सप्ताहभर करने लायक कामको जोककर चला जाता है और उनी सप्ताहमें लौट आता है, उस भिक्षुको० दुक्कट हो । 2015 ४-- (दोप नहीं) "० ऑगनमें झाळू दे और प्रबार णा के एक सप्ताह पहिले करने लाधवः कामको दावी गडकर चला जाता है, तो भिक्षुयो चाहे वह उम आवाममें आये या न आये उन भिधको दोष नही ।" 206 202 'दास समाप्तिपर पटनेवाली (आश्विन) पूर्णिमाको प्रदारणा कहते है।