३७२।१ ] वर्षावासमें स्थान छोळना [ १७३ करके पहले तीन मास या पिछले तीन मास बिना बसे विचरण करनेके लिये नहीं चल देना चाहिये । उदयन उपासक तब तक प्रतीक्षा करे, जब तक कि भिक्षु वर्षा वा स करते हैं। वर्षावास समाप्त करके वे आयेंगे। यदि उसको काम करनेकी शीघ्रताहो तो वहीं आश्रम-वासी भिक्षुओंके पास विहार की प्रतिष्ठा करानी चाहिये ।' (यह सुन कर) उदयन उपासक हैरान होता था-' -'कैसे भदन्त लोग मेरे संदेश भेजनेपर नहीं आते ! मैं ( दान-)दायक, ( कर्म-)कारक, और संघका सेवक हूँ ।' भिक्षुओंने उदयन उपासक के हैरान ... होनेको सुना। तब उन्होंने भगवान्से यह बात कही। भगवान्ने उसी संबंधमें उसी प्रकरणमें धार्मिक कथा कह भिक्षुओंको संबोधित किया ।- १- "भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, सात ( व्यक्तियों )के सप्ताह भरके कामके लिये संदेश भेजनेपर जानेकी, किन्तु बिना संदेश भेजे नहीं-(१) भिक्षुका (काम हो), (२) भिक्षुणीका (काम हो), (३) शिक्षमाणाका ( कामहो ), (४) श्रामणेरका (काम हो ), (५) श्रामणेरीका (काम हो), (६) उपासकका ( काग हो ), (७) उपासिकाका (काम हो); भिक्षुओ ! अनुमति देता हूँ, इन सातोंका सप्ताह भरका काम होनेपर संदेश भेजनेपर जानेकी, किन्तु विना संदेश भेजे नहीं । सप्ताह भर रहकर फिर लौट आना चाहिये। 8 २–(क)। "जब भिक्षुओ ! (किसी) उपासकने संघके लिये विहार बनवाया हो और यदि वह भिक्षुओंके पास संदेश भेजे–'भदन्त लोग आवें, मैं दान देना चाहता हूँ, धर्मोपदेश सुनना चाहता हूँ, और भिक्षुओंका दर्शन करना चाहता हूँ'; तो भिक्षुओ ! संदेश भेजनेपर सप्ताह भरके कामके लिये जाना चाहिये, किन्तु संदेश न भेजनेपर नहीं (जाना चाहिये) और सप्ताह भरमें लौट आना चाहिये । १ (ख) “यदि भिक्षुओ ! (एक) उपासकने संघके लिये अटारी ( अड्ढयोग) बनवाई हो, प्रासाद, हर्म्य, गुहा, परिवेण (=आँगनदार घर), कोठरी, उपस्थान-शाला (= चौपाल), अग्नि- गाला, क प्पि य कुटी (= भंडार), पाखाना, (=बच्च-कुटी), चंक्रम (=टहलनेकी जगह), चंक्रमन- गाला (=टहलनेकी शाला), उदपान (= प्याव), उदपान-शाला, जन्ताघर (-स्नानगृह), जन्ताघर- शाला, पुष्करिणी, मंडप, आराम (=वाग), और आराम-वस्तु ( =वागके भीतरके घर ) बनवाये हों; और वह भिक्षुओंके पास संदेश भेजे-'भदन्त लोग आयें, मैं दान देना चाहता हूँ, धर्मोपदेश मुनना चाहता हूँ, भिक्षुओंका दर्शन करना चाहता हूँ, ।'-तो भिक्षुओ ! संदेश मिलनेपर सप्ताह भरके कामके लिये जाना चाहिये ; विना संदेश भेजे नहीं (जाना चाहिये); सप्ताह भरमें लौट आना चाहिये । 10 (ग) “यदि भिक्षुओ ! (एक) उपासकने वहुतसे भिक्षुओंके लिये अटारी० सप्ताह भरमें लौट आना चाहिये। II (घ) ० एक भिक्षुके लिये० । 12 (ड) भिक्षणी-संघके लिये । 13 (च) " बहुतनी भिक्षुणियोंके लिये । 14 ० एक निक्षुणीके लिये । IS (ज) “० वतनी गिक्षमाणाओंके लिये० । 16 (ज) “ एक शिक्षमाणाके लिये । 17 बहुतने धामणेरोंके लिये । 18 (ट) “ • एव धामणेरके लिये । 19 14 ० 14
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