२०६।२ ] सम्मिलित उपोसथ [ १६७ २- “जव भिक्षुओ! आश्रमवासी भिक्षुओंका (उपोसथ) पंचदशीका हो और नवागन्तुकोंका चतुर्दशीका, तो यदि (संख्यामें) आश्रमवासी अधिक हों तो नवागन्तुकोंको आश्रमवासियोंका अनुसरण करना चाहिये ०१ । 839 ३---"जब भिक्षुओ! आश्रमवासी भिक्षुओंका (उपोसथ) प्रतिपद्का हो और नवागन्तुकोंका पंचदशीका तो यदि (संख्यामें) आश्रमवासी अधिक हों तो आश्रमवासियोंको इच्छा विना (अपनेको देकर) नवागन्तुकोंके (संघ) की पूर्णता नहीं करनी चाहिये; नवागन्तुकोंको सीमासे बाहर जाकर उपो- सथ करना चाहिये। यदि (दोनों संख्यामें) बरावर हों तो आश्रमवासियोंको इच्छा बिना (अपनेको देकर) नवागन्तुकों (के संघ) की पूर्णता नहीं करनी चाहिये। यदि (संख्यामें) नवागन्तुक अधिक हों तो आश्रमवासियोंको आगन्तुकों (के संघ) की या तो संपूर्णता करनी चाहिये या सीमासे बाहर जाना चाहिये। 840 ४-"जब भिक्षुओ! आश्रमवासी भिक्षुओंका (उपोसथ) पंचदशीका हो और नवागन्तुकों- का प्रतिपद्का तो यदि संख्या आश्रमवासी अधिक हों तो नवागन्तुकोंको आश्रमवासियोंके संघकी पूर्णता करनी चाहिये या सीमासे बाहर जाना चाहिये; यदि बराबर हों तो नवागन्तुकोंको आश्रमवासियोंकी पूर्णता करनी चाहिये या सीमासे वाहर जाना चाहिये; यदि संख्यामें नवागन्तुक अधिक हों तो नवागन्तुकों- को, इच्छा विना, आश्रमवासियोंकी संपूर्णता नहीं करनी चाहिये, बल्कि आश्रमवासियोंको सीमाके बाहर जाकर उपोसथ करना चाहिये ।" 841 (२) आवासिकों और नवागन्तुकोंका अलग उपोसथ नहीं १-"जव भिक्षुओ! नवागन्तुक भिक्षु आश्रमवासी भिक्षुओंकी आश्रमवासिताके आकार, लिंग = निमित्त ; उद्देश्य, और अच्छी तरहसे विछी चारपाई, चौकी, तकिया-बिछौना पीने धोनेके पानी, तथा अच्छी तरह साफ-वाफ आँगन देखें। और देखकर संदेहमें पळे-क्या आश्रमवासी भिक्षु हैं या नहीं। संदेहमें पळकर वह खोज न करें। और विना खोजे उपोसथ करें, तो दुक्क ट का दोप है । यदि संदेहमें पळकर वह खोज करें, खोज कर न देखें और विना देखे उपोसथ करें तो दोष नहीं। संदेहमें पळकर वह अलग उपोसथ करें तो दुक्क ट का दोप है। संदेहमें पळे वे खोजें, खोजनेपर देखें, देखनेपर 'नष्ट हों ये, विनष्ट हों ये, इनमे वया मतलब ?'-इस कटूक्ति-पूर्वक उपोसथ करें तो थु ल्ल च्च य का ! । - दोष है। 842 २–“जव भिक्षुओ ! नवागंतुक भिक्षु आश्रमवासी भिक्षुओंकी आश्रमवासिताके आकार, लिंग, उद्देश्य, टहलनेमें पैरका शब्द, पाठका शब्द, खाँसनेका शब्द और थूकनेका शब्द सुनें । और मुनकर संदेहमें प.० २ थुल्लच्चयका दोप होता है । 843 ३-"जव भिक्षुओ ! आश्रमवासी भिक्षु नवागंतुक भिक्षुओंकी नवागंतुकताके आकार लिंग = निमित्त, उद्देश्य, अपरिचित पात्र, अपरिचित चीवर, अपरिचित आसन, पाँवोंका धोना, पानीका मींचना देखें, देखकर संदेहमें पढ़ें-क्या नवागंतुक है, या नहीं है ?–संदेहमें पळकर वह खोज न थुल्लच्चयका दोप है । 844 ४-"जब भिक्षुओ ! आश्रमवासी भिक्षु नवागंतुक भिक्षुओंकी नवागंतुकताके आकार लिंग निमिन, उद्देश्य, आते वक्त पैरका गब्द, जूताके पाटफटानेका गब्द, खाँसनेका गब्द, थूकनेका शब्द मुनते हैं । मुनकर संदेहमें पळते हैं-क्या नवागंतुक है, या नहीं है ?-संदेहमें पळकर खोज न करें०३
ऊपरहीकी तरह इसे भी पहो। ऊपरहीकी तरह पढ़।। २ ऊपरहीकी तरह इसे भी पड़ो।