१६६ ] ३-महावग्ग [ २६१ १०१-१२५ -"यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों, वह नहीं दे ख ते कि कुछ अन्य आश्रमवासी भिक्षु सीमाके भीतर आ गये हैं। ०१ । 238-262 घ. अन्य अावासिकोंकी अनुपस्थितिको सुने बिना किया गया उपोसथ १२६-१५०-"यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों, वह नहीं सुन ते कि कुछ अन्य आश्रमवासी भिक्षु सीमाके भीतर आ रहे हैं । ० 1 263-287 १५१-१७५—“यदि ० उपोसथके दिन एकत्रित हों, वह नहीं सुन ते कि कुछ अन्य आश्रमवासी भिक्षु सीमाके भीतर आ गये हैं। ० २ ।” 288-312 (२) कुछ नवागन्तुकोंकी अनुपस्थितिको जानकर या जाने, देखे, सुने बिना नवागन्तुकोंका किया उपोसथ १७६-३५० -"यदि० भिक्षुओ! किसी आवासमें बहुतसे–चार या अधिक आश्रमवासी भिक्षु उपोसथके दिन एकत्रित हों और वे न जानें कि कुछ नवागन्तुक भिक्षु नहीं आये० ३ ।"313-487 (३) कुछ अाश्रमवासियोंकी अनुपस्थितिको जानकर या जाने, देखे, सुने बिना नवागन्तुकोंका किया उपोसथ ३५१-५२५–“यदि भिक्षुओ! किसी आवासमें बहुतसे–चार या अधिक-नवागन्तुक भिक्षु उपोसथके दिन एकत्रित हों और वे न जाने कि कुछ आश्रमवासी भिक्षु नहीं आये ० ४ ।"488-662 (४) कुछ नवागन्तुकोंकी अनुपस्थितिको जाने, देखे, सुने बिना नवागन्तुकोंका किया उपोसथ ५२६-७००-३ “यदि भिक्षुओ! किसी आवासमें बहुतसे–चार या अधिक-नवागन्तुक भिक्षु उपोसथके दिन एकत्रित हों और वे न जानें कि कुछ नवागन्तुक भिक्षु नहीं आये ०५।" 663-837 १६-उपोसथके काल, स्थान और व्यक्तिके नियम (१) उपोसथकी दो तिथियोंमें एक स्वोकार १--"जव भिक्षुओ! आश्रमवासी भिक्षुओंका (उपोसथ) चतुर्दशीका हो और नवागन्तुकोंका पंचदशीका, तो यदि आश्रमवासी (संख्यामें) अधिक हों तो नवागन्तुकोंको आश्रमवासियोंका अनुसरण करना चाहिये । यदि (दोनों) बरावर हों तो (भी) नवागन्तुकोंको आश्रमवासियोंका अनुसरण करना चाहिये। यदि नवागन्तुक (संख्यामें) अधिक हों तो आश्रमवासियोंको नवागन्तुकोंका अनुसरण करना चाहिये। 838 १ "आश्रमवासी भिक्षु नहीं आये",को लेकर जैसे ऊपर १७५ प्रकारसे कहा गया है वैसेही यहाँ भी दुहराना चाहिये। २'आश्रमवासी भिक्षु नहीं आये'को लेकर जैसे ऊपर १७५ प्रकारसे कहा गया है वैसेही यहाँ भी दुहराना चाहिये। ३ सद्धर्मप्रकाशप्रेसके (अलुतगम बेन्तोता, लंका १९११ ई०) 'महावग्ग में 'सत्ततिक सतानि' (=सत्तर सौ) छपा है जिसमें 'तिक' यह दो अधिक अक्षर प्रमादसे छपे मालूम होते हैं, क्योंकि उपर्युक्त क्रमसे गिनती ७०० (=सत्त सतानि) ही होनी चाहिये। "ऊपर जैसाही यहाँ भी समझो ।
पृष्ठ:विनय पिटक.djvu/२१७
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।